वर्दी को कलंकित करता दरोगा अजय कुमार त्रिपाठी!
-सौरभ सिंह सोमवंशी
प्रयागराज : यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भले ही भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की बात करते हों परन्तु उनकी पुलिस आंकठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई है और आम जनता को लूटने में लगी है। इसी तरह सिपाही से भर्ती होकर नौकरी की शुरुआत करने वाले एक दरोगा अजय कुमार त्रिपाठी हैं, जो उन्नाव जिले के बिहार थाने में प्रभारी निरीक्षक के पद पर तैनात थे। यहां पर उनकी तमाम शिकायतें उच्च अधिकारियों को मिलती रहीं और इसी बीच बिहार थानाध्यक्ष रहते हुए एक लड़की को गैंगरेप करने के बाद जला दिया गया था। मामले में लापरवाही बरतने के आरोप में प्रभारी निरीक्षक अजय कुमार त्रिपाठी को 10 दिसंबर 2019 को तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर के द्वारा सस्पेंड कर दिया गया था।
पैसे और अपने राजनीतिक रसूख व पहुंच के बल पर रामराज्य का सपना दिखाने वाली सरकार को धता बताते हुए इन्होंने 9 जून 2020 को दोबारा बहाली पाई, वह भी उन्नाव के ही अचलगंज थाने में प्रभारी निरीक्षक बनाया गया। परंतु 14 दिन भी नहीं बीते थे की पैसे की हवस इस कदर शुरुर बन के चढ़ी कि यह अपनी पुरानी करतूतों से बाज नहीं आये और दोबारा निलंबित कर दिया गया। मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ था जिसमें अचलगंज थाना अंतर्गत कोरारी खुर्द गांव में शनिवार को लगने वाले साप्ताहिक बाजार में मछली बेच रहे हड़हा गांव निवासी संजय, रविशंकर, मक्का, कुलदीप व अडरुवा के अजय व उमेदखेड़ा के रामगोपाल समेत दर्जनभर दुकानदारों को थाना प्रभारी अजय कुमार त्रिपाठी के निर्देश पर पुलिस थाने उठा लाई और उन सबको पूर्ण बंदी के दौरान मास्क ना लगाने के आरोप में जेल भेजने की धमकी दी गई बाद में सभी आरोपियों को 2000 क्रमशः लेकर छोड़ दिया गया। जब समस्त आरोपी अपने घर आ गए तो दूसरे दिन एक वीडियो वायरल हुआ जो अचलगंज के प्रभारी निरीक्षक अजय कुमार त्रिपाठी के भ्रष्टाचार का प्रदर्शन कर रहा था। पुलिस अधीक्षक रोहित पी कनय ने बीघापुर क्षेत्राधिकारी अंजनी कुमार राय एवं एलआईयू की जांच में पाया कि दरोगा अजय कुमार त्रिपाठी भ्रष्टाचार में लिप्त थे। इस आधार पर दोबारा 24 जून 2020 को पुनः निलंबित कर दिया गया।
अब प्रश्न यह उठता है कि इस तरह के कृत्य करने वाले पुलिसकर्मियों से व्यवस्था कैसे चलेगी? और क्या इस तरह के कृत्य लगातार करने वाले दरोगाओं के लिए निलंबन ही पर्याप्त सजा है? मैंने अपने एक बड़े पुलिस अधिकारी मित्र से जब इस घटना पर चर्चा किया तो उन्होंने सहजता के साथ कहा कि निलंबन व बहाली सेवा काल के दौरान एक हिस्सा मात्र है। अब सवाल उठता है कि यदि इस तरह का कुकृत्य कोई आम आदमी करता है तो आइपीसी की विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया जाता है, कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते लगाते किसी तरह से जमानत तो करा लेते हैं पर मुकदमा चलता रहता है और आम आदमी आर्थिक व मानसिक क्षति होने लगती है। क्या भारत के कानून में आम नागरिक व पुलिस व अन्य अधिकारियों के लिए अलग अलग अधिकार निहित है?
जब कि संविधान में कानून सबके लिए समान बाध्यकारी है। दरोगा जितनी बार निलंबित होता है क्या बहाली होने की स्थिति में वह दोष मुक्त हो जाता है? कहीं न कहीं अधिकारियों की जांच में खामियां हैं ये एक बड़ा सवाल है।कहा जाता है कि दरोगा अजय कुमार त्रिपाठी लखनऊ के सरोजनी नगर, नादरगंज, पीजीआई, कृष्णा नगर, सदर, आशियाना, फिनिक्स, एल्डिको और आलमबाग में भी रह चुका है। लखनऊ में तैनाती के दौरान सन् 2008 में आरोप लगा था कि इसने एक ज्वैलरी चोरी के मामले में ज्वेलरी को अपने पास छिपा लिया और एसपी पूर्वी को मैनेज कर साक्ष्य छुपाने में कामयाब हुआ था। संभवतः जुलाई 2017 को शायद इनकी तैनाती लखनऊ के कृष्णा नगर में तैनाती थी, तभी एक घोर अपराध में 8 माह के लिए लाइनहाजिर भी हुए थे।
इस दौरान इसने अपने भ्रष्टाचार के बल पर अत्यधिक संपत्ति अर्जित की है। सूत्रों के अनुसार यह भी कहा जाता है की इसके पास कई महंगी बाइक, लगभग दर्जनों प्लाट, मकान के अलावा महंगी-महंगी चार पहिया गाडियां भी हैं। लखनऊ के रिहायशी पाश एरिया कृष्णा नगर में आलीशान मकान तो है और अन्य शहरों में भी है। अक्सर अचल सम्पत्ति यह अपनी नजदीकी सगे रिश्तेदार के नाम खरीदता है। बड़ा प्रश्न यह है कि इस तरह के दरोगाओं के रहते उत्तर प्रदेश की पुलिस व्यवस्था कैसे सुधरेगी? क्या योगी सरकार चंद महीनों में पुनः बहाल करेगी या फिर भ्रष्टाचार में आंकठ डूबे अजय कुमार त्रिपाठी के खिलाफ जांच कर कार्रवाई करेगी?
मुझे एक कहानी याद आती है एक गांव का गरीब व्यक्ति अपनी फरियाद लेकर दरोगा के पास गया, दरोगा ने कहा कि दादा कुछ पैसे दे दो मैं यही निपटा लेता हूं, मगर मुकदमे व अदालत के चक्कर लगाते हुए मर तक जाओगे पर न्याय की गारंटी नहीं है। ईमानदार गांव के व्यक्ति ने दरोगा की एक न सुनी और अदालत में मुकदमा चलने लगा, वर्षों मुकदमा चलने के बाद जब न्यायाधीश ने ईमानदार बुजुर्ग व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुनाया तो बुजुर्ग व्यक्ति भाव विभोर होकर जज साहब से बोला कि आप के आल औलाद को ईश्वर सुखी रखे और बड़े होकर दारोगा बनें। इस बात से विदित होता है कि दारोगा कितना रसूख वाला होता है।