लोकतांत्रिक देशों ने कम्युनिस्ट चीन के ख़िलाफ शुरू की घेराबंदी
वयं राष्ट्रे जागृयाम । (55) कोपेनहेगन डेमोक्रेसी समिट-2020
भारत-चीन का सीमा विवाद कहीं चीन की बर्बादी का वजह ना बन जाय।विश्व की सभी लोकतांत्रिक शक्तियां चीन को सबक़ सिखाने का मन बना चुकी हैं ।15 जून को घटित गलवान घाटी में भारत-चीन सैनिकों के मध्य हुए झड़प के अतिरिक्त पिछले 25-30 में तमाम ऐसी घटनाएँ हुईं हैं जो चीन के लिए अच्छा संकेत नही देते हैं।इसी कारण चीन के कम्युनिस्ट पार्टी का अख़बार Global Times विक्षिप्ततापूर्ण ट्वीट कर रहा है।आइए इन घटनाओं की पड़ताल करते हैं…। 19 जून शुक्रवार को प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाली‘ कोपेनहेगन डेमोक्रेसी समिट-2020’ में ‘यूरोप और चीन की चुनौतियां’ विषय पर अपने वर्चुअल संबोधन में अमेरिकी विदेश मंत्री पोंपियो ने कहा कि पश्चिम को कई साल तक यह उम्मीद रही कि वे चीन की कम्युनिस्ट के रवैये में बदलाव लाकर चीनी नागरिकों का जीवन स्तर सुधार सकते हैं। इस दौरान चीन का सत्तारूढ़ दल सहयोगपूर्ण संबंध का झांसा देकर हमारी सदाशयता का फायदा उठाता रहा।चीन आज हमारी उदारता का फायदा उठा रहा है।पोम्पियो ने कहा किचीनी फौज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के साथ सीमा पर तनाव बढ़ाने में जुटी है। दक्षिण चीन सागर में वह गलत तरीके से अपना क्षेत्र बढ़ा रही है। उन्होंने कहा कि चीन ने कोरोना वायरस के बारे में झूठ बोला, फिर इसे दुनिया के बाकी हिस्सों में फैलने दिया। उसने अपनी साजिश को छिपाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पर दबाव डाला।
उन्होंने कहा कि दशकों तक अमेरिका और यूरोपीय देशों ने भारी उम्मीद के चीन में भारी निवेश किया। चीनी सेना से जुड़े लोगों के लिए शैक्षिक संस्थान खोले गए और चीन की सरकार द्वारा प्रायोजित बच्चों को अपने यहां पढ़ाई का मौका दिया लेकिन इसका कोई फायदा नहीं निकला। आज चीन हांगकांग में बर्बरता कर रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि सीसीपी नाटो जैसे संस्थानों केजरिए दुनिया में बरकरार आजादी और उससे आईतरक्की कोखत्म करना चाहती है। वह सिर्फ चीन को फायदा पहुंचाने वाले नियम-कायदे अपनाना चाहती है। पोम्पियो ने कहा कि सीसीपी ने संयुक्त राष्ट्र के संधि को तोड़ते हुए हांग कांग की आजादी को खत्म करनेका फैसला किया।उइगुर मुसलमानों पर जुल्म ढा रहा है। इसने हाल ही में पड़ोसी देश भारत की सीमा पर खूनी संघर्ष को अंजाम दिया है।
इस समिट के बाद अमेरिका ने चीन पर फिर एक बार निशाना साधा है।विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) अपने पड़ोस में ‘दुष्ट’ रवैया अपनाए हुए है। वह अमेरिका और यूरोप के बीच साइबर कैम्पेन के जरिए गलत प्रचार कर रही है, ताकि यहां की सरकारों को कमजोर किया जा सके। वह विकासशील देशों को अपने कर्ज और निर्भरता के बोझ तले दबाना चाहती है। मई के अंतिम सप्ताह मे अमेरिकी कांग्रेस में एक बिल पेश किया गया है जिसमें तिब्बत को एक अलग देश के तौर पर मान्यता देने की बात कही गई है। अगर यह बिल पास हुआ तो अमेरिकी राष्ट्रपति को यह अधिकार मिल जाएगा कि वो चाहे तो तिब्बत को आज़ाद देश के तौर पर मान्यता प्रदान कर दें। इस बिल को पेश करने वाले स्कॉट पैरी (Scott Perry) डोनल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के ही सांसद हैं। पैरी अमेरिकी सेना के अधिकारी रह चुके हैं। उन्होंने ही हॉन्गकॉन्ग की आजादी का बिल भी पेश किया था।पहले से ही ताइवान और हांग कांग के मसले पर बुरी तरह घिरा चीन तिब्बत मामले पर भी मुश्किलों में आ जाएगा। इससे पूरी दुनिया का ध्यान इस तरफ़ जाएगा कि चीन ने इस विशाल देश को हड़प रखा है। तिब्बत की निर्वासित सरकार हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में है।तिब्बत की स्वतंत्रता की बातें फिर से होने लगी हैं।
इधर तीन दिन पहले ही अमेरिका ने प्रशांत महासागर में अपने तीन जंगी जहाजोंकी तैनाती कर दी है।दक्षिण चीन सागर में अमेरिका और चीन के बीच पिछले कुछ सालों में कई बार तनाव की स्थिति पैदा हुई है।अमेरिका ने थियोडोर रूजवेल्ट, रोनाल्ड रीगन और निमिट्ज वॉरशिप को फिलहाल दक्षिण चीन सागर में तैनात किया है।तीनों वॉरशिप 1 लाख टन वजनी है। इन पर 60 लड़ाकू विमान तैनात होते हैं। हाल ही में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) में अमेरिका की स्थायी प्रतिनिधि के बेली हचिसन ने कहा कि चीन एक शांतिपूर्ण भागीदार हो सकता है लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं लगा रहा है… हचिसन ने ताइवान, जापान और भारत के खिलाफ चीन के आक्रामक व्यवहार और उकसावे वाली हरकतों पर कहा, “यह हमारे रडार पर बहुत अधिक है और मुझे लगता है कि हमें जोखिम का आंकलन करना चाहिए. सबसे अच्छे के लिए उम्मीद करनी चाहिए लेकिन सबसे बुरे के लिए तैयार भी रहना चाहिए”
विस्तारवादी मानसिकता को संजोने वाला चीन अब दक्षिण चीन सागर में भी जापान (China Japan Tension) के साथ द्वीपों को लेकर उलझ सकता है।जापान ने चीन को घेरना शुरू किया जिस महाद्वीप को लेकर दोनों देशों में विवाद है उस पर जापान ने अपना दावा कर बिल पास कर दिया। चीन और जापान दोनों ही इन निर्जन द्वीपों पर अपना दावा करते हैं। जिन्हें जापान में सेनकाकु और चीन में डियाओस के नाम से जाना जाता है। इन द्वीपों का प्रशासन 1972 से जापान के हाथों में है। वहीं, चीन का दावा है कि ये द्वीप उसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं और जापान को अपना दावा छोड़ देना चाहिए। कहा कि सेनकाकू द्वीप हमारे नियंत्रण में हैं और निर्विवाद रूप से ऐतिहासिक और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत हमारा है। अगर चीन कोई हरकत करता है तो हम उसका जवाब देंगे। जापान और अमेरिका में 1951 में सेन फ्रांसिस्को संधि है जिसके तहत जापान की रक्षा की जिम्मेदारी अमेरिका की है। इस संधि में यह भी बात लिखी है कि जापान पर हमला अमेरिका पर हमला माना जाएगा। चीन की कम्युनिस्ट सरकार की औक़ात नहीं है कि पूरे विश्व से लोहा ले सके। लग रहा है चीन के कम्यूनिस्टों का पाप का घड़ा भर चुका है और उसे फोड़ने के शुरुआत भारत ने कर दी है।मतलब साफ़ है की चीन विश्व शांति के लिए ख़तरा बनता जा रहा है। लोकतंत्र और मनवाधिकारों के प्रति इसका नकारात्मक दृष्टिकोण जग ज़ाहिर होने लगा है। भारत समेत विश्व की सभी लोकतांत्रिक शक्तियाँ चीन को या तो सुधार देंगी या पागल कुत्ते जैसा कम्यूनिस्टों का सफ़ाया कर देंगी।
मेरा देश बदल रहा है, ये पब्लिक है, सब जानने लगी है… जय हिंद-जय राष्ट्र!