गोण्डा के तीन प्रमुख मंदिरों में जलाभिषेक को लगा भक्तों का तांता
वही कर्नलगंज नगर से मात्र तीन किलोमीटर दूर हुजूरपुर रोड पर स्थित पौराणिक बरखंडी नाथ महादेव मंदिर के शिवलिंग की गहराई का आज तक किसी को पता नहीं चला। बताया जाता है कि जब कर्नलगंज क्षेत्र पूरा भाग जंगल था। तब जंगल में चरवाहे अपनी जानवर को चराने आते थे। तथा मूंज को एकत्र कर उसे कूटते तथा रस्ती बनाते थे। एक दिन जिस पत्थर पर कूट रहे थे। अचानक खून निकलने लगा, इसकी जानकारी श्रावस्ती के राजा को हुई। वह अपने हाथी घोड़ों के साथ वहां पहुंचे तथा पत्थर को जंजीर से बांधकर हाथी से खींचने लगे। लेकिन पत्थर को निकाल ना सके। जब खुदाई भी नाकाम रही और वह बीमार पड़ गए तब एक रात्रि स्वप्न देखा कि मंदिर बनवाने से ठीक हो सकते हैं। उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया तथा वहां पुजारी की नियुक्ति की मंदिर नियमानुसार यहां का पुजारी जीवन भर अविवाहित रहेगा।
इसी तरह वजीरगंज क्षेत्र के ग्राम नगवा बल्हाराई में स्थित बालेश्वर नाथ मंदिर को लेकर धार्मिक ग्रंथ श्रीमद्भागवत में वर्णित है। कि भगवान राम के पूर्वज राजा सुदुम्न द्वारा स्थापित बालेश्वर नाथ मंदिर की मान्यता है। कि जंगल क्षेत्र होने के नाते यहां पर भगवान शिव और माता पार्वती भ्रमण किया करते थे, इसलिए यह क्षेत्र इंसानों के लिए वर्जित था। अवधारणा है कि राजा सुदुम्न शिकार के दौरान जंगल में प्रवेश कर गए, जिन्हें माता पार्वती ने स्त्री बन जाने का श्राप दिया। स्त्री बन जाने के बाद राजा दुविधा में पड़ गए। वह सोचने लगे कि वह अब अयोध्या किस प्रकार जाएंगे। उन्होंने भगवान शिव से अपनी गलती स्वीकार करते हुए क्षमा मांगी। भगवान शिव चाह कर भी श्राप वापस न ले सके। बशर्ते उन्होंने आशीर्वाद दिया कि छह महीने तक स्त्री व छह महीने तक पुरुष के रूप में रहोगे। इस तरह जब राजा पुरुष के वेशभूषा में होते थे, तो अयोध्या और जब स्त्री के वेशभूषा में होते थे, तब वह जंगल में भगवान शिव की आराधना करते थे। इनके द्वारा स्थापित शिव मंदिर आज बाबा बालेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है।