लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बसपा की तर्ज पर गैर राजनैतिक मुखौटा ओढ़कर राजनैतिक उद्देश्य साधने में लगे एक सामाजिक संगठन की हलचल ने राजनैतिक दलों की नींद उड़ा दी है। अम्बेडकर पूजा का सहारा लेकर दलित राजनीति की वैतरणी पार करने की जुगत में लगी भाजपा को अभी तक मायावती के निस्तेज हो जाने से बड़ी राहत थी लेकिन नये संगठन के मंसूबे की आहट मिलने से अब उसकी चिंता फिर से बढ़ गयी है। अन्य दलों का तो वैसे भी पुरसाहाल नहीं है। उस पर वैकल्पिक दलित लामबंदी की जो बाट वे जोह रहे थे उसमें नये संगठन ने आग लगा दी है।
लखनऊ के होटल व्यवसायी राजकुमार कनौजिया ने चार वर्ष पहले धोबी समाज की अलग पहचान के लिए संत गाडगे सेवा समिति का गठन किया था जो अब बीज से वट वृक्ष का रूप ले चुका है। कई जिलों में जहां धोबी समाज अच्छी खासी संख्या में हैं, वहीं राजकुमार कनौजिया बड़ी सभायें कर चुके हैं। राजकुमार परिश्रमी हैं और उनकी सांगठनिक क्षमता गजब की है। शुरू में उन्होंने धोबी समाज की मंत्री गुलाबो देवी जैसे भाजपा नेताओं का सहयोग भी समाज के सताये हुए लोगों की मदद के लिए प्राप्त की। तब उनके पत्ते उजागर नहीं थे पर अब वे किसी नेता या दल की सरपरस्ती का लेविल अपने संगठन पर न लगने देने के लिए सतर्क हैं। उन्होंने 75 जिलों में मजबूत शाखायें स्थापित कर ली हैं। ज्वलंत मुद्दों पर पहल कदमी का कोई अवसर वे नहीं छोड़ते। हाल ही में कानपुर देहात में बौद्ध सम्मेलन कर रहे धोबी समाज के लोगों पर हमला हुआ तो वे उनके बीच पहुंच गये और उन्होंने साफ कहा कि उनको तथागत बुद्ध के समय का रामराज्य चाहिए। जब भारत सोने की चिड़िया था न कि दशरथ के पुत्र राम का राज्य जब महिलाओं की नाक, कान काटे गये थे।
अन्य राज्यों पर भी राजकुमार ने अपनी निगाहें गड़ा रखी हैं। उनका कहना है कि महाराष्ट्र में भाजपा को पीछा करने में धोबी समाज ने बड़ी भूमिका अदा की। शिव सेना के संस्थापक स्व0 बाला साहब ठाकरे ने संत गाडगे के प्रति जो आदर जताया था उसका कर्जा अदा करने के लिए धोबी समाज का समर्थन वहां पूरी तरह शिव सेना के साथ हो गया है। इसीलिए संत गाडगे जयंती पर नितिन गडकरी के मार्गदर्शन में उनके समाज के एक विधायक से बड़ा आयोजन कराया गया पर धोबी समाज इससे गुमराह नहीं होगा। उत्तर प्रदेश में भाजपा के शासन में धोबी समाज के अधिकारियों और कर्मचारियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से परे धकेला जा रहा है। धोबी समाज समझ गया है कि भाजपा उसकी शुभ चिंतक नहीं है।
पर कनौजिया का झुकाव राजनीति में किस ओर है वे इसे जाहिर नहीं होने देते। कनौजिया दूर की कौड़ी फैंक रहे हैं। धोबी समाज को केन्द्र में रखकर पूरे शोषित समाज को अपने साथ लामबंद करने की रणनीति पर उन्होंने काम शुरू कर दिया है। वे सीएए का विरोध कर रही मुस्लिम महिलाओं के बीच पहुंचे तो उन्होंने गुर्राते हुए कहा कि सरकार में बैठे लोगों को क्या हक है कि वे हमारी नागरिकता का सबूत मांगे। अगर हम इस देश के नागरिक नहीं है तो उन्हें चुनने वाले वोटरों में हमारी भी मौजूदगी देखते हुए पहले उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए। ओबीसी के बीच स्वीकार्यता के लिए वे इसी तरह काम कर रहे हैं। बसपा की तर्ज पर संत गाडगे समिति को उन्होंने नये बहुजन आंदोलन का न्यूक्लियस बनाने की ठान रखी है। उनका आगाज तो अच्छा है, अब अंजाम चाहे जो भी हो।
17 करोड़ की जनसंख्या का दावा
राजकुमार का दावा है कि धोबी समाज की संख्या देश में 15 से 17 करोड़ के बीच है। यदि यह समाज समूचे शोषित, दलित वर्गो की लड़ाई लड़ने के लिए कमर कस ले तो बहुजन युग को स्थापित करने का पराक्रम दिखा सकता है। उन्होंने कहा कि संत गाडगे समिति का नजरिया संकीर्ण नहीं है इसलिए यह समिति अपने को केवल धोबी समाज की फिक्र तक सीमित नहीं रखेगी। इसी मकसद से सताये हुए लोगों के साथ जहां भी बेइंसाफी हो रही है, वे वहां पहुंच रहे हैं।