हरियाली सभी को पसंद होती है। आंखों को सुकून देती है। जिनके पास घरों में खुली जगह नहीं होती है, वे गमलों में ही अपनी हरियाली उगा लेते हैं। फ्लैटों में रहने वालों के लिए गमले ही आखिरी विकल्प है। ऐसे में सीमेंट और मिट्टी के गमले अब आउटडेटेड हो चुके हैं। अब प्लास्टिक के रंग-बिरंगे गमलों ने लोगों को घरों और बालकनियों में एंट्री ले ली है। प्लास्टिक के यह गमले बालकनी में लटक कर भी बगीचे की फीलिंग दे रहे हैं।
अब शहरों में कच्ची जगह घरों में बहुत कम बची है। पुराने घरों में जरूर अभी भी गार्डन दिख जाते हैं, लेकिन तेजी से बढ़े फ्लैट कल्चर ने पेड़-पौधों के बीच बैठकर चाय पीने का मजा खत्म कर दिया है। ऐसे में अब लोगों ने अपने घरों की बालकनियों को ही गार्डन में बदल लिया है। इसमें उनकी मदद हैंगिग गमले बहुत कर रहे हैं। इन गमलों में हैंडिल बना होता है, जो बालकनी की रेलिंग में लटक जाते हैं।
कई रंगों में हैं उपलब्ध
यह गमले शहर की नर्सरियों में कई रंगों में उपलब्ध हैैं। साइज के हिसाब से ही कीमतें भी हैैं। जैसे आठ इंच वाले गमले की कीमत 30 रुपये तो 12 इंच वाले गमले की कीमत 60 रुपये है। इससे बड़े साइज के गमले 200 से 250 के बीच में है। हैैंगिग गमलों की कीमत 50 से 80 रुपये के बीच में है। आवास विकास में नर्सरी संचालक मनोज बताते हैं कि हमारे पास हम सीमेंट से ज्यादा प्लास्टिक के गमले ज्यादा बिक रहे हैं। हैंगिग गमलों की डिमांड ज्यादा है। सिकंदरा में नर्सरी चलाने वाले राघव ने बताया कि इस क्षेत्र में फ्लैट ज्यादा हैं। इसलिए हमारे एरिया में लोग बालकनी में पौधे लगाते हैं। बालकनी की रेलिंग में हैंगिग गमले ही सुविधाजनक रहते हैं। लाल-नीले और पीले रंग के गमलों की मांग ज्यादा रहती है।
सीमेंट के गमले हैं महंगे
सीमेंट और प्लास्टिक के गमलों की कीमतों में भी काफी अंतर है। इसी वजह से लोग अब प्लास्टिक के गमलों को ज्यादा पसंद कर रहे हैैं। सीमेंट के 12 इंच के गमले की कीमत 100 रुपये से ज्यादा है,वहीं प्लास्टिक का गमला 60 रुपये में मिल रहा है। साथ ही साथ सीमेंट के गमलों का रख-रखाव भी ज्यादा होता है। हल्की सी चोट में ही इनके टूटने का डर होता है,जबकि प्लास्टिक के गमले रफ-टफ होते हैं।