अब आपके घरों से निकले प्लास्टिक के कचरे से चकाचक सड़कें बनेंगी तो वहीं फेंकी गईं खाली प्लास्टिक की बोतलों से टी-शर्ट और टोपी का निर्माण होगा। कचरे में निकले प्लास्टिक का उपयोग सड़कों के निर्माण में किया जाएगा। इससे एक ओर जहां पर्यावरण को पहुंच रहे नुकसान से काफी हद तक निजात मिलेगी तो वहीं इससे बनीं सड़कें आम सड़कों से अलग होंगी, जो पानी से भी जल्दी डैमेज नहीं होगी।
एक ओर जहां पटना नगर निगम और यूएनडीपी की सहयोग से जल्द ही प्लास्टिक की सड़कें बनाई जाएगी तो वहीं पूर्व मध्य रेलवे ने प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत फेंके गए बोतलों से टीशर्ट और टोपी बनाने के लिए मुंबई की एक कंपनी से समझौता किया है। इस प्रोजेक्ट के तहत कुछ टी-शर्ट बनकर तैयार हुई हैं। उसे दानापुर रेलवे स्टेशन पर प्रदर्शनी के तौर पर रखा गया है। रेलवे आने वाले दिनों में इसे बाजार में बेचेगी।
रेलवे कचरे के निष्पादन के साथ ऊर्जा संरक्षण के तहत मुंबई की कंपनी बायोक्रक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड से करार होने के बाद पानी की खाली बोतलों को रीसाइकिल करने का काम पिछले साल शुरू हुआ। इसके तहत पूर्व मध्य रेलवे ने बीते एक साल में 16 स्टेशनों पर बोतल क्रशर मशीनें लगाईं।एक मशीन लगाने में रेलवे ने लगभग पांच लाख रुपये खर्च किए।
एक टी-शर्ट बनाने में 350 रुपये खर्च
इन स्टेशनों से क्रश की गईं बोतलें दानापुर रेल मंडल भेजी जाती हैं, जिसे कंपनी ले जाती है। पहली बार दो अक्टूबर 2019 को क्रश की गईं बोतलें कंपनी को उपलब्ध कराई गईं। कंपनी उत्तराखंड के पशुपति टेक्सटाइल के साथ मिलकर कपड़ा बना रही है। वह अभी तक तीन बार में कुल आठ क्विंटल क्रश की गईं बोतलें ले गई है। इससे बनीं टी-शर्ट रेलवे को उपलब्ध कराई हैं। कंपनी को एक टी-शर्ट बनाने में लगभग 350 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। वह एक टन प्लास्टिक कचरे से 10 हजार रुपये मूल्य के टी-शर्ट रेलवे को देगी।
कंपनी के डायरेक्टर फाउंडर अजय मिश्रा ने बताया कि प्लास्टिक बोतल से धागा बनाया जाता है। इसे कॉटन या पॉलिस्टर के धागे में मिक्स कर कपड़ा तैयार किया जाता है। इसमें रीसाइकिल मैटेरियल का 25 प्रतिशत इस्तेमाल किया जाता है। इससे बनी टी-शर्ट और टोपी को हर मौसम में आराम से पहना जा सकता है।
पूर्व मध्य रेलवे के सीपीआरओ राजेश कुमार ने बताया कि यात्री खाली पानी की बोतलें इधर-उधर फेंकने की जगह क्रशर मशीन में डालें, इसके लिए उन्हें जागरूक किया जा रहा है। इस तरह का प्रयोग पूर्व मध्य रेलवे के सभी स्टेशनों पर करने की योजना है। इससे स्टेशनों को साफ-सुथरा रखने में मदद मिलेगी। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी प्रभावी कदम साबित होगा।
कचरे में फेंके गए प्लास्टिक से बनीं सड़कें होंगी सुरक्षित
वहीं कचरे में फेंके गए प्लास्टिक को प्रोसेस कर बनी सडकें सस्ती होने के साथ अपेक्षाकृत ज्यादा सुरक्षित होंगी और ये सड़कें मानसून के दौरान टिकाऊ भी होती हैं। इसके अलावा यह 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी नहीं पिघलती हैं। इस प्रोजेक्ट से जुडे़ अधिकारियों का कहना है कि यह प्रयोग देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक रोल मॉडल पेश करने का काम करेगा।
सड़क निर्माण के लिए 80 लाख रुपए की लागत से पटना के गर्दनीबाग में 4 मशीनें लगाई गई है। यहां फटका, वेलिंग और अन्य मशीनों की मदद से प्लास्टिक को प्रोसेस किया जाएगा। मशीन से डस्ट निकाला जाएगा और वेलिंग मशीन से प्लास्टिक को दबाकर सही साइज में लाया जाएगा। जबकि शेडर मशीन से प्लास्टिक को 2 से 4 एमएम के साइज में काटकर टुकड़ा किया जाएगा।
यूं तो प्लास्टिक कई प्रकार के होते हैं लेकिन सड़क बनाने के लिए केवल टेम्पर लेस प्लास्टिक ही यूज किया जाएगा। हालांकि, कचरे में हर प्रकार के प्लास्टिक होंगे। उसमें से प्लास्टिक चुनने का काम प्लांट के कर्मचारी करेंगे।
एक्सपर्ट की माने तो सड़क बनाते समय तीन लेयर में प्लास्टिक का मैटेरियल डाला जाएगा। ऊपरी लेयर में तारकोल और बिटुमिन्स के साथ-साथ प्लास्टिक मैटेरियल डाले जाएंगे। सड़क निर्माण के बाद और निर्माण के बीच में भी प्लास्टिक डाला जाएगा। इससे सड़क पर पानी का असर नहीं रहेगा और सड़क जल्दी नहीं टूटेगी।