रिजर्व बैंक से 1.75 लाख करोड़ लेने के बाद फिर 45 हजार करोड़ लेने की तैयारी में केन्द्र सरकार
-पवन सिंह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई सरकार भले ही अपने कार्यकाल की उपलब्धियों का बखान करती रहती है, लेकिन उनके दौर में एक ऐसी मुसीबत बढ़ गई है जिसकी कीमत आने वाली कई सरकारों को चुकानी पड़ेगी। मोदी सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल के दौरान सरकार की कुल देनदारियां 49 फीसदी बढ़कर 82 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। हाल में सरकारी कर्ज पर जारी स्टेटस पेपर के 8वें एडिशन से यह बात सामने आई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई सरकार भले ही अपने कार्यकाल की उपलब्धियों का बखान करती रहती है, लेकिन उनके दौर में एक ऐसी मुसीबत बढ़ गई है जिसकी कीमत आने वाली कई सरकारों को चुकानी पड़ेगी। मोदी सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल के दौरान सरकार की कुल देनदारियां 49 फीसदी बढ़कर 82 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। हाल में सरकारी कर्ज पर जारी स्टेटस पेपर के 8वें एडिशन से यह बात सामने आई है।
केंद्र सरकार पर कुल सरकारी कर्ज 82 लाख करोड़
सरकारी उधारी पर वित्त मंत्रालय के डाटा में सितंबर, 2018 के आंकड़ों से तुलना की गई है। इसके मुताबिक सितंबर, 2018 तक केंद्र सरकार पर कुल 82.03 लाख करोड़ रुपए का कर्ज हो गया था, जबकि जून, 2014 तक सरकार पर कुल 54.90 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था। इस प्रकार मोदी सरकार के दौरान भारत पर मौजूद कुल कर्ज लगभग 28 लाख करोड़ रुपए बढ़ गया है। मोदी सरकार तेजी से रिजर्व बैंक के रिजर्व पर भी हाथ साफ कर रही है। 1.75 लाख करोड़ रुपए रिज़र्व बैंक से डकारने के बाद केन्द्र सरकार फिर से 45 हजार करोड़ रुपए रिज़र्व बैंक से लेने पर आमादा है… कारण साफ है कि केन्द्र सरकार के पास देश के आर्थिक संकट से निपटने की कोई योजना नहीं है। उपभोक्ताओं ने अपनी क्रय शक्ति को सीमित कर लिया है। विदेशी निवेश सुस्त है उस पर बुरी खबर यह है कि देश के ही उद्योगपतियों ने अपने ही देश में नये उद्योग लगाने से पीछे हटे हैं। हालात यह हैं कि मौजूदा उद्योग ही चलते रहें यही कम बड़ी चुनौती नहीं है।
पीएमसी बैंक की तबाही तो बानगी थी, कहानी अभी बाकी
बैंकिंग सेक्टर को लेकर भी यह सुगबुगाहट आरंभ हो चुकी है कि क्या अगला नंबर इसी सेक्टर का लगने वाला है? पीएमसी बैंक के 55 हजार हजार ग्राहकों की तबाही हालांकि पाकिस्तान, मंदिर और अब NRC की टक्कर में मीडिया में जगह नहीं बना पाई लेकिन इतना जरूर है कि आजादी के बाद बैंकिंग सेक्टर पर से देश के नागरिकों का भरोसा टूट रहा है या यूं कहें कि एक डर घर कर गया है। LIC का घाटा एक हजार करोड़ और पोस्ट आफिस का घाटा 1500 करोड़ पार कर चुका है..इन सबका असर यह हुआ है कि विगत पांच सालों में 1.50 से अधिक नौकरियां जा चुकी हैं और इस वर्ष 16 लाख और नौकरियों की शव यात्रा निकालेगी… मंहगाई दर से विगत दस सालों का रिकार्ड तोड़ा है.. सरकार NRC पर गंभीर है, अर्थव्यवस्था की तबाही, बेरोजगारी, मंहगाई…से उसे कोई सरोकार नहीं है…उसे हिंदू-मुस्लिम करना था उसने खूबसूरती से उसे अंजाम दे दिया है… लेकिन सवाल यह है कि जो सरकार रिजर्व बैंक से 45 हजार करोड़ रुपए उगाहने की तैयारी में है वह NRC लागू कराने पर होने वाले 70 हजार करोड़ रुपए के खर्च को कहा से मैनेज करेगी?