लखनऊ : सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रविवार को जेएनयू में हुई हिंसा को एक सोचा, समझा हमला करार दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह हमला भाजपा ने करवाया था। पुलिस बवाल और हिंसा करने वालों को शह दे रही थी। जेएनयू को एक खास विचारधारा के लोग एक ही विचारधारा में ढाल देना चाहते हैं। सपा अध्यक्ष ने सोमवार को पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में आयोजित प्रेस कान्फ्रेस में कहा कि जेएनयू में जो हुआ उसे देश और दुनिया ने देखा कि किस तरह से लोग छिपकर आए। तोड़फोड़ की गई और सुनियोजित तरीके से सब कुछ किया गया। छात्रसंघ की अध्यक्ष को गंभीर चोटें लगीं। टीचिंग स्टाफ, नॉन टीचिंग स्टाफ की भी पिटाई की गई। योगेंद्र यादव के साथ भी धक्कामुक्की हुई। उन्होंने कहा कि ये लोग जेएनयू को एक विचारधारा में ढालना चाहते हैं। जेएनयू में गरीब बच्चे पढ़ते हैं। भाजपा की सरकार नहीं चाहती कि गरीब बच्चे पढ़ें। यह चीज हमने उत्तर प्रदेश में भी बहुत करीब से देखी है।
अखिलेश यादव ने एक वीडियो भी दिखाया और कहा कि वाराणसी में समाजवादी छात्रसभा पर भी जेएनयू जैसे हमले हुए थे। सरकार और पुलिस को सब पता है कि जेएनयू में हुए हमलों के पीछे कौन थे? ये किसके षडयंत्र से हुए? इसकी जांच होनी चाहिए और इन लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जेएनयू में लोगों ने मुंह छिपा रखे थे। क्या पुलिस ने एएमयू में इसी तरह से व्यवहार किया था। क्या जामिया में भी इसी तरह का व्यवहार किया गया था। सपा अध्यक्ष ने कहा कि मुझे खुशी है कि वहां के नौजवानों ने सबकुछ एक रंग में नहीं ढलने नहीं दिया। एक विशेष विचारधारा में नहीं रंगने दिया। जेएनयू में भी यही सवाल है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लोग अब तक छात्र संघ में नहीं पहुंच पाए हैं। वे छात्रसंघ और विश्वविद्यालय में कब्जा करना चाहते हैं। यहां पर भाजपा अपने लोगों को बैठाना चाहती है। उन्होंने कहा कि जो लोग भी ऐसा कार्य कर रहे हैं। सरकार की जानकारी में है। पुलिस जानती होगी, उन पर कार्रवाई हो। इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी में जो हमला हुआ है उसके पीछे षड्यंत्र किसका था, ये सच सामने आना चाहिए।
सपा अध्यक्ष ने प्रदेश सरकार पर गोरखपुर में बच्चों की मौत का आंकड़ा छिपाने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि गोरखपुर में दिमागी बुखार से ग्रस्त बच्चों का चिकित्सक दूसरी बीमारी के नाम पर गलत इलाज कर रहे हैं। बच्चे जांच के लिए आते हैं तो उन्हें दूसरी बीमारी बताई जाती है जिससे कि रिकॉर्ड खराब न हो सके। गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में दिमागी बुखार के कारण वर्ष 2017 में सौ से ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी। जनवरी 2019 से अक्तूबर 2019 तक 1500 बच्चों की मौत हुई, जबकि प्रदेश सरकार ने बच्चों की संख्या 500 से भी कम दिखाई है। मौत का आंकड़े छिपाने के लिये सरकार का चिकित्सकों पर दबाव है। इसकी जांच हाईकोर्ट के सिटिंग जज की अध्यक्षता में विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम से करवाई जानी चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार को कोटा के अस्पताल में बच्चों की मौत की तो फिक्र है लेकिन गोरखपुर में बच्चों की जान जा रही है उसकी फिक्र कब करेगी। अखिलेश यादव ने कहा कि पिछली बार सरकार की गलती से जान गई थी लेकिन सरकार मदद के बजाय आकंड़े छुपाने में लगी थी। स्वास्थ्य मंत्री कह रहे थे कि अगस्त में बच्चे मरते हैं। मुख्यमंत्री कह रहे थे कि जो लोग बच्चे पैदा करते हैं वहां उनका ध्यान रखें।