भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी सुरक्षा स्याही विकसित की है, जो पासपोर्ट जैसे दस्तावेज की नकल, नकली दवाओं की पैकिंग और मुद्रा नोटों की जालसाजी को रोकने में मददगार हो सकती है। एक निश्चित आवृत्ति के प्रकाश के संपर्क में आने पर इस स्याही में दो रंग उभरने लगते हैं। सामान्य प्रकाश में यह स्याही सफेद रंग की दिखाई देती है। लेकिन, जब इस पर 254 नैनोमीटर की आवृत्ति से पराबैंगनी प्रकाश डाला जाता है तो इससे लाल रंग उत्सर्जित होने लगता है और पराबैंगनी प्रकाश को बंद करते ही स्याही से हरा रंग उत्सर्जित होने लगता है।
पराबैंगनी प्रकाश के संपर्क में आने से इस स्याही से लाल रंग 611 नैनोमीटर और हरा रंग 532 नैनोमीटर की आवृत्ति से उत्सर्जित होता है। लाल रंग का उत्सर्जन प्रतिदीप्ति (फ्लूअरेसंस) और हरे रंग का उत्सर्जन स्फुरदीप्ति (फॉस्फोरेसेंस) प्रभाव के कारण होता है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (एनपीएल), नई दिल्ली और एकेडेमी ऑफ साइंटिफिक एंड इनोवेटिव रिसर्च, गाजियाबाद के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई है। यह अध्ययन जर्नल ऑफ मैटेरियल्स केमिस्ट्री-सी में प्रकाशित किया गया है।
ऐसे तैयार की स्याही
स्याही के अपेक्षित गुण प्राप्त करने के लिए दो रंगों को 3:1 के अनुपात में मिलाया गया है। इस मिश्रण को 400 डिग्री तापमान पर तीन घंटे तक ऊष्मा से उपचारित किया गया है। इस तरह, एक तरंग दैध्र्य की आवृत्ति पर दो रंगों का उत्सर्जन करने वाली स्याही बनाने के लिए महीन सफेद पाउडर का विकास किया गया है। स्याही के उत्पादन पर पिगमेंट एक दूसरे से चिपक जाएं, यह सुनिश्चित करने के लिए रासायनिक तत्वों का ऊष्मीय उपचार किया गया है। अंतत: पाउडर को पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) माध्यम के साथ मिलाया गया है ताकि चमकदार सुरक्षा स्याही प्राप्त की जा सके।
अब तक नहीं हुआ प्रयोग
पदार्थों के अन्य स्नोतों से निकले विकिरण को अवशोषित कर तत्काल उत्सर्जित करने के गुण को फ्लूअरेसंस कहते हैं। जबकि, फॉस्फोरेसेंस से तात्पर्य दहन या ज्ञात ऊष्मा के बिना किसी पदार्थ द्वारा प्रकाश उत्सर्जन से है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सुरक्षा उद्देश्यों के लिए दोहरे रंग की चमक उत्सर्जित करने की यह एक नवीनतम तकनीक है और इसका इस्तेमाल नोटों या गोपनीय दस्तावेज की छपाई के लिए पहले नहीं किया गया है।
फ्लूअरेसंस और फॉस्फोरेसेंस के सिद्धांत पर है आधारित
एनपीएल के वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख शोधकर्ता डॉ. बिपिन कुमार गुप्ता ने बताया कि इस स्याही का विकास फ्लूअरेसन्स-फॉस्फोरेसेंस सिद्धांत पर आधारित है, जो एक तरंग दैध्र्य की आवृत्ति पर ही दो रंगों का उत्सर्जन करती है। आमतौर पर दो रंगों के उत्सर्जन के लिए दोहरी आवृत्ति के तरंग दैध्र्य की जरूरत पड़ती है। लाल एवं हरा रंग उत्सर्जित करने वाली यह चमकदार स्याही विकसित करने के लिए रासायनिक तत्वों (सोडियम इट्रियम फ्लोराइड, यूरोपियम डोप्ड और स्ट्रोन्टियम एल्युमिनेट) को यूरोपियमडिस्प्रोसियम के साथ संश्लेषित किया गया है।