जानिए क्‍यों-नागरिकता कानून को नहीं रोक सकेंगे विरोध करने वाले राज्‍य, क्‍या है कानून के अनछुए पहलू

इस समय संसद से सड़क तक नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 को लेकर कोहराम मचा हुआ है। गैर-भाजपा शासित राज्‍यों में इस कानून पर विरोध के सुर और मुखर हो गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि विरोध के पीछे का सच क्‍या है? क्‍या इस कानून ने देश के संविधान का अतिक्रमण किया है? आखिर राज्‍यों के विरोध का औचित्‍य क्‍या है। क्‍या उनका विरोध संवैधानिक है? आज हम आपको इस कानून के पीछे का पूरा सच बताने की कोशिश करेंगे। आज हम उन संविधान के अनुच्‍छेदों पर प्रकाश डालेंगे जो चर्चा में नहीं रहे, जिनका वास्‍ता संसद के अधिकार और नागरिकता से जुड़ा है। राज्‍य सरकारों का विरोध कितना जायज है? क्‍या सच में केंद्र सरकार ने संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण किया है? इन सभी गंभीर सवालों पर संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप की राय।

राज्‍याें का विरोध नाजायज और असंवैधानिक

सुभाष कश्यप का कहना है कि हमारे देश की प्रणाली अमेरिका से इतर है। अमेरिका में दोहरी नागरिकता का कॉन्‍सेप्‍ट है, लेकिन भारत में एकल नागरिकता का सिद्धांत है। यानि अमेरिका में एक संघीय नागरिकता है और दूसरी राज्‍यों की नागरिकता। इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि अगर कोई अमेरिका का निवासी है, तो वह वहां के लिए एक राज्‍य का भी अलग से नागरिक होगा। भारत की स्थिति इससे एकदम भिन्‍न है। यहां एकल नागरिकता का सिद्धांत लागू होता है। यह राज्‍यों का विषय क्षेत्र नहीं है। राज्‍य सरकारों को इस पर कानून बनाने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए इस पर उनका विरोध भी असंवैधानिक है।

नागरिकता पर संसद सर्वोच्‍च 

A- आखिर क्‍या है संवैधानिक प्रावधान 

संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि संविधान का अनुच्‍छेद 11 संसद को यह अधिकार देता है कि ससंद नागरिकता पर कानून बना सके। इस प्रावधान के अनुसार, संसद के पास यह अधिकार है कि वह नागरिकता को रेगुलेट कर सकती है। यानी संसद को यह अधिकार है कि वह नागरिकता की पात्रता तय करे। सर्वोच्‍च सदन को यह अधिकार है कि वह तय करे कि किसको नागरिकता मिलेगी और कब मिलेगी। कोई विदेशी किन परस्थितियों में  देश की नागरिकता ह‍ासिल कर सकता है। इन सारी बातों पर कानून बनाने का हक सिर्फ संसद को है।

B- यूनियन लिस्‍ट का हिस्‍सा है नागरिकता 

सुभाष कश्यप का कहना है कि इसके अलावा संविधान में उल्‍लेख तीन सूचियों में नागरिकता से जुड़ा मामला यूनियन लिस्‍ट का हिस्‍सा है। नागरिकता से जुड़ा मामला यूनियन लिस्‍ट के 17वें स्‍थान पर है। यह राज्‍य सूची या समवर्ती सूची का हिस्‍सा नहीं है। इसलिए नागरिकता पर कानून बनाने के अधिकार सिर्फ और स‍िर्फ संसद को ही है। इस लिए राज्‍य सरकारों का विरोध उचित नहीं है। यह संवैधानिक नहीं है। राज्‍यों का यह विरोध केवल राजनीतिक स्‍वार्थ के लिए ही है।

नागरिकता पर मौन नहीं है संविधान  

सुभाष कश्यप का कहना है कि नागरिकता के मसले पर संव‍िधान मौन नहीं है। संविधान के अनुच्‍छेद 5 में बाकयादा नागरिकता के बारे में विस्‍तार से उल्‍लेख किया गया है। इसके तहत यह बताया गया है भारत का नागरिक कौन होगा। इसमें यह प्रावधान है कि अगर कोई व्‍यक्ति भारत में जन्‍मा हो या जिसके माता-पिता में से कोई भारत में जन्‍मा हो। अगर कोई व्‍यक्ति संविधान लागू होने से पहले कम से कम पांच वर्षों तक भारत में रहा हो या तो भारत का नागरिक हो, वही देश का मूल नागरिक होगा।

विपक्ष का क्‍या है तर्क 

A- अनुच्‍छेद 14 को विपक्ष ने बनाया अधार

सुभाष कश्‍यप का कहना है कि इस कानून के खिलाफ विपक्ष अनुच्‍छेद 14 को आधार बनाकर अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। अनुच्‍छेद 14 के तहत भारत के राज्‍यक्षेत्र में किसी व्‍यक्ति को विधि के समक्ष समता या विधियों के समान सरंक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा। यह अधिकार देश के नागरिकों के साथ अन्‍य लोगों पर भी लागू होता है। सरकार के पास भी अपने कानून के पक्ष में पर्याप्‍त और शक्तिशाली तर्क है। केंद्र सरकार नागरिकता के तर्कसंगत वर्गीकरण के आधार पर इसे जायज ठहरा सकती है। सरकार यह हवाला दे सकती है कि देश में गैर कानूनी ढंग से रह रहे लोगों के लिए यह कानून जरूरी है। इसकी आड़ में कई अवांछित तत्‍व भी देश में शरण ले सकते हैं। आदि-आदि।

B- अनुच्‍छेद 10 पर उठाए सवाल

विपक्ष इस कानून के विरोध में संविधान के अनुच्‍छेद 10 और 14 की दुहाई दे रहा है। आखिर क्‍या है अनुच्‍छेद 10 ? संविधान का अनुच्‍छेद 10 नागरिकता का अधिकार देता है। अब सवाल उठता है कि क्‍या इस कानून से लोगों की नागरिकता को खतरा उत्‍पन्‍न हो गया है ? लेकिन इस कानून में नागरिकता खत्‍म किए जाने की बात नहीं है। इस नए कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो कहता है कि अगर आप आज नागरिक हैं तो कल से नागरिक नहीं माने जाएंगे। नया नागरिकता संशोधन बिल सीधे तौर पर इस अनुच्छेद 10 का उल्लंघन नहीं करता है।

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