नागरिकता संशोधन बिल 2019 पर उत्तर पूर्वी राज्यों में घमासान मचा हुआ है। कई दिनों से जारी हिंसक प्रदर्शनों पर काबू पाने के मकसद से कुछ जगहों पर इंटरनेट बंद कर दिया गया है। ऐसा करने की सबसे बड़ी वजह अफवाहों पर काबू पाना है, जो हिंसक प्रदर्शन की बड़ी वजह बनी हुई हैं। इसके अलावा गुवाहाटी में अनिश्चिकालीन कर्फ्यू लगाया गया है। इसके अलावा यहां पर सेना को तैनात किया गया है। एहतियात के तौर पर कई ट्रेनों को रद कर दिया गया है। असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम और मेघालय इन प्रदर्शनों की चपेट में है। प्रदर्शन की वजह से त्रिपुरा के स्कूल और कॉलेज में होने वाली परीक्षाएं स्थागित कर दी गई हैं। यहां पर कई जगहों पर मोबाइल और एसएमएस सेवा को बंद किया गया है तो कई जगहों पर निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है। बुधवार को असम में हुआ उग्र प्रदर्शन रोकने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले तक छोड़ने पड़े थे। वहीं डिब्रूगढ़ में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया। इसके अलावा दिसपुर में प्रदर्शनकारियों ने बसों में आग लगा दी थी।
गुवाहाटी में आने वाले शिंजो अबे
आपको बता दें कि गुवाहाटी या असम में हो रहे प्रदर्शन को रोकना केंद्र और राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल है। इसको लेकर सरकार आश्वस्त भी दिखाई दे रही है। दरअसल, 15-16 दिसंबर को जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे दो दिवसीय सम्मेलन में भाग लेने के लिए गुवाहाटी आ रहे हैं। यहां पर उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होगी। यह सम्मेलन दोनों देशों के बीच व्यापार और अन्य हितों को लेकर काफी अहम है। पहले माना जा रहा था कि प्रदर्शन को देखते हुए सरकार इस सम्मेलन की जगह को बदल सकती है। लेकिन, अब सरकार ने यह तय कर दिया है यह सम्मेलन पूर्व तय कार्यक्रम के मुताबिक तय जगह पर ही होगा। प्रदर्शन और सम्मेलन को देखते हुए गुवाहाटी समेत पूरे असम में सुरक्षा व्यवस्था और बढ़ा दी गई है।
सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद
यहां पर एक बड़ा सवाल रह-रह कर ये उठ रहा है कि आखिर प्रदर्शनकारी के उग्र होने के पीछे वजह क्या है और क्या है इस बिल की सच्चाई। इस पूरे मामले पर दैनिक जागरण के नीलू रंजन प्रकाश डालने की कोशिश की है। लेकिन इस पर जाने से पहले आपको ये भी बताना बेहद जरूरी है कि इसी तरह का प्रदर्शन उत्तर पूर्व में 70 के दशक में भी देखा गया था। इसको शांत करने के लिए राजीव गांधी ने एक समझौता किया था जो इतिहास में असम समझौते के नाम से दर्ज है।
असम समझौते से लेकर वर्तमान में प्रदर्शन की वजह
दरअसल, 1979 के लोकसभा उपचुनाव में असम की मंगलदोई सीट पर वोटरों की संख्या में कुछ समय में अचानक काफी बढ़ गई थी। जानकारी लेने पर यहां बांग्लादेश से आए अवैध शरणार्थियों की बात सामने आई थी। इसके बाद यहां के मूल निवासियों ने अवैध शरणार्थियों के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिया था। ये प्रदर्शन कुछ दिन या सप्ताह नहीं बल्कि छह वर्षों तक चला। इस दौरान 885 लोगों की मौत हुई थी। 1995 में यह उग्र प्रदर्शन असम समझौते के साथ खत्म हुए थे। इस समझौते में 25 मार्च 1971 के बाद असम में घुसे अवैध शरणार्थियों की पहचान कर उन्हें देश के बाहर निकालना था। वहीं दूसरे राज्यों के लिए यह समय सीमा 1951 तय की गई थी। इस समझौते में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (NRC) को लागू करने की भी बात कही गई थी।
क्या कहते हैं प्रदर्शनकारी
वर्तमान में जो नागरिकता संशोधन बिल-2019 पारित हुआ है उसमें यह समय सीमा 2014 की गई है। प्रदर्शनकारी इस समय सीमा को असम समझौते का उल्लंघन मान रहे हैं। इनका कहना है कि वर्तमान बिल असम समझौते के नियम-6 का उल्लंघन करता है। जिसके तहत असम के मूल निवासियों की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई पहचान और उनके धरोहरों के संरक्षण की प्रशासनिक व्यवस्था की गई है। 31 अगस्त 2019 को NRC के तहत असम के 19 लाख लोगों बाहर कर दिया गया। बाहर होने वालों में ज्यादातर हिंदू और वहां के मूल आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते थे। वर्तमान में प्रदर्शन करने वालों का कहना है कि नागरिकता बिल आने से NRC का प्रभाव खत्म हो जाएगा और इसकी वजह से अवैध शरणार्थियों को नागरिकता मिल जाएगी।
2015 में भी हुए थे प्रदर्शन, सरकार ने की थी पहल
आपको बता दें कि 2015 में जब सरकार ये बिल लेकर आई थी, तब भी इसी तरह के धरने-प्रदर्शन का दौर चला इसको शांत करने के लिए सरकार ने उत्तर पूर्वी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और वहां के अन्य सामाजिक संगठनों के साथ कई दिनों तक वार्ता की थी। खुद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इसकी जानकारी लोकसभा में दी थी। उनके मुताबिक शाह ने इस दौरान 140 संगठनों के प्रतिनिधिमंडल के साथ करीब 129 घंटे की वार्ता की थी। इसका मकसद प्रदर्शनकारियों की शंकाओं का निवारण करना और राज्यों में शांति बहाली करना था। शाह द्वारा इस वार्ता में इन लोगों को यह विश्वास दिलाया गया कि जिस पहचान के खोने को लेकर वह आशंकित हो रहे हैं वह पहचान बरकरार रहेगी। इसके अलावा मणिपुर में इनर लाइन परमिट शुरू किया गया था। आपको यहां पर ये भी बता दें कि पूवोत्तर राज्य देश के संविधान के शड्यूल 6 के तहत सुरक्षित या सरंक्षित है। इसके तहत यहां के बाहरी राज्य का कोई भी व्यक्ति इन राज्यों में संपत्ति नहीं खरीद सकता है। यह सरंक्षण वहां के लोगों और वहां के संसाधनों को सरंक्षित करने के मकसद से दिया गया है।
प्रदर्शन के पीछे राजनीतिक मंशा
दर्शनकारियों को इस बात से आशंका है कि इस बिल के पास होने के बाद बांग्लादेश से बड़ी संख्या में आए शरणार्थी जो पहले से यहां पर मौजूद हैं भारत के नागरिक बन जाएंगे। इससे उनकी पहचान या असतित्व खतरे में पड़ सकता है। हालांकि नीलू रंजन का कहना है कि यह विरोध राजनीति से प्रेरित है। उनके मुताबिक सरकार ने पूवोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों, सांसदों और अन्य प्रतिनिधिमंडलों से जो वार्ता की थी उसका सकारात्मक रुख साफतौर पर यहां देखा जा सकता है। इस बिल का सांसद और न ही मुख्यमंत्री विरोध कर हैं। इसके बावजूद कुछ विपक्षी पार्टियां लगातार अपने राजनीतिक हित साधने के लिए प्रदर्शनकारियों को भड़काकर इसे अंजाम देने में लगी हैं। सरकार को सबसे बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि कहीं विपक्ष के बहकावे में आकर पूवोत्तर का आम आदमी इस प्रदर्शन का हिस्सा न बन जाए। हालांकि सरकार फिलहाल इस बात को लेकर आशवस्त दिखाई दे रही है कि यह जल्द ही खत्म हो जाएगा।
नागरिकता संशोधन विधेयक के दायरे से बाहर वाले क्षेत्र:
दो श्रेणियां हैं जिन्हें इस विधेयक से दूर रखा गया है, इनर लाइन’ द्वारा संरक्षित राज्य और संविधान की छठी अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्र।
इनर लाइन परमिट (आइएलपी): यह एक विशेष परमिट है, जो भारत के अन्य हिस्सों के नागरिकों को आइएलपी द्वारा संरक्षित राज्य में प्रवेश करने की अनुमति प्रदान करता है। राज्य सरकार द्वारा दिए गए आइएलपी परमिट के बिना किसी भी अन्य राज्य का भारतीय आइएलपी के अधीन आने वाले राज्य में जा नहीं सकता है।
छठी अनुसूची: छठी अनुसूची कुछ पूर्वोत्तर राज्यों के प्रशासन में विशेष प्रावधानों से संबंधित है। यह इन राज्यों में स्वायत्त जिला परिषदों (एडीसी) के लिए विशेष अधिकार प्रदान करता है। एडीसी के पास विभिन्न विषयों पर अपने अधिकार क्षेत्र के तहत कानूनों को लागू करने की शक्तियां हैं, इसका एक उद्देश्य आदिवासी समुदायों द्वारा स्व-शासन को बढ़ावा देना है।
कैब: किस राज्य में कितना प्रभावी
असम: राज्य में तीन स्वायत्त जिला परिषद हैं, जिनमें से दो भौगोलिक रूप से मिले हुए हैं। छठी अनुसूची के अंदर यह तीनों आते हैं। इनको छोड़कर कैब बाकी हिस्से में प्रभावी होगा।
मेघालय: इस राज्य में भी तीन एडीसी हैं। असम के विपरीत, मेघालय में एडीसी लगभग पूरे राज्य को कवर करते हैं। केवल शिलांग का एक छोटा हिस्सा इसके दायरे में नहीं आता है। शिलांग के उस हिस्से में कैब प्रभावी होगा।
अरुणाचल प्रदेश: पूरा राज्य आइएलपी के तहत कैब के दायरे से दूर होगा।
नगालैंड: राज्य में लाइन ऑफ परमिट की व्यवस्था है। इसलिए यह कैब के दायरे से दूर होगा।
मिजोरम: इस राज्य में भी आइएलपी की व्यवस्था है।
त्रिपुरा: राज्य में एक एडीसी है, जो 70 फीसद क्षेत्र को कवर करता है। हालांकि, कुल आबादी की दो तिहाई आबादी शेष 30 फीसद हिस्से में रहती है। इसका मतलब है कैब छोटे और अधिक घनी आबादी वाले क्षेत्रों में
प्रभावी होगा।
मणिपुर: संपूर्ण राज्य को भी आइएलपी का संरक्षण प्राप्त है। हालांकि, पहले यह संरक्षित नहीं था, लेकिन संसद में नागरिकता बिल पेश किए जाने के बाद सरकार ने यहां भी आइएलपी की व्यवस्था लागू कर दी।