अमित शाह को कुछ लोग तड़ी पार नाम से ही पुकार कर खुश होते हैं। नफ़रत और घृणा से ही उनका ज़िक्र करते हैं। लेकिन अमित शाह से आप असहमत रहिए, सहमत रहिए, नाराज रहिए या खुश लेकिन बतौर गृहमंत्री अमित शाह ने अपने छह महीने के कार्यकाल में तीन बड़े फैसले लेकर देश और समाज की दशा और दिशा बदल दी है। एक निर्णायक मोड़ पर देश को दुनिया के नक्शे पर उपस्थित कर दिया है। तीन तलाक़, अनुच्छेद 370 और अब नागरिकता संशोधन बिल। तीनों ही असंभव कार्य थे जिन्हें अमित शाह ने संभव बना दिया है। अब चौथा कार्य समान नागरिक संहिता हो सकता है।
-दयानंद पांडेय
मेरा स्पष्ट मानना है कि देश के अब तक तमाम गृह मंत्रियों में सरदार पटेल के बाद अमित शाह ही इतने ताकतवर गृह मंत्री बनकर उपस्थित हैं। कड़े और कारगर फैसलों ने अमित शाह को निर्विवाद रूप से नरेंद्र मोदी का उत्तराधिकारी बना दिया है। और लिखकर रख लीजिए अमित शाह भविष्य के प्रधान मंत्री हैं। विपक्ष को बेदम करने में, कठोर फ़ैसला ले कर उसे कार्यान्वित कर सफलता के नए प्राचीर रचना अब अमित शाह की नियति है। आप कहेंगे, लेकिन महाराष्ट्र? किसी कद्दावर आदमी के काम को ऐसी असफलता और ठोकर के पैमाने पर मापने का कोई औचित्य नहीं है। फिर किसी भी सफल राजनीतिज्ञ को ऐसी ठोकर और ऐसी असफलता का स्वाद मिलते रहना भी बहुत ज़रूरी है। ताकि बड़े और कड़े फैसलों में कोई चूक न हो, कभी। आप कहेंगे, आसाम सहित पूर्वोत्तर में नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ विद्रोह? भारत एक ज़िंदा देश है। लोकतंत्र है। विरोध और असहमति भी दिखना ही चाहिए। अलग बात है पूर्वोत्तर में यह बिल प्रभावी नहीं है। बाक़ी विपक्ष को अब से सही, मुसलमानों को डराना बंद कर देना चाहिए। और कि मुसलमानों को बात-बेबात डरने का नाटक और उपद्रव बंद कर, देश की मुख्यधारा में पूरी ताक़त से खड़ा हो जाना चाहिए। पाकिस्तान और इमरान खान के सुर में सुर मिलाना भारतीय मुसलामानों और विपक्ष दोनों ही को बंद कर देना चाहिए।
आखिर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश के घुसपैठिए अगर देश से बाहर भगा दिए जाते हैं तो भारतीय मुसलमानों के हितों पर चोट कैसे पड़ता है भला? भारतीय हैं, भारतीय बन कर शान से रहना सीखिए, मुस्लिम दोस्तों। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेशी घुसपैठियों को अपनी अस्मिता से मत जोड़िए। अपने घर में दिया जलाइए पहले। फिर दुनिया भर में दिया जलाइए। अपनी शिक्षा की चिंता कीजिए। अपनी गरीबी से लड़िए। नफरत की राजनीति करने वालों के साथ सुर मत मिलाइए। मत भूलिए कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश के लोग आतंक की आग बांटने के लिए दुनिया भर में परिचित हैं। उन के साथ सेक्यूलरिज्म की नकली दवाई खा कर इन से नाता जोड़ना बंद कीजिए। विपक्ष का वोट बैंक बहुत बन चुके आप। अब अपना नेतृत्व खुद पैदा कीजिए। असदुद्दीन ओवैसी, आज़म खान जैसे जहरीले लोगों के नेतृत्व से बचिए। अपने समाज को शिक्षित करने पर ज़ोर दीजिए। रोहिंगिया देश में मुश्किल खड़ी कर रहे हैं। देश के मुस्लिम समाज के लिए ही यह खतरा हैं। इस बात को समझिए।
सोचिए कि बिलकुल अभी-अभी दिल्ली के अनाज मंडी में 600 गज की दूरी में बनी अवैध फैक्ट्री में 13 साल से 30 साल तक के जो 43 बच्चे दम घुटने से सोए-सोए मर गए। यह सभी मुसलमान थे। बिहार के गरीब घरों से थे। जिन के घरों के चिराग बुझे हैं, उन के दिल से पूछिए। लड़ना ही है तो अपनी गरीबी से, अपनी ज़िल्लत से लड़िए। देश, समाज और तरक्की से नहीं। कंधे से कंधा मिला कर देश के साथ खड़े होइए। घुसपैठियों के साथ नहीं। यह देश मुसलामानों का भी उतना ही है, जितना किसी और का। हां, जिन लोगों को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट उन की आग में घी डाल कर उन की मदद करेगी तो जितनी जल्दी हो सके, इस मुगालते से बचिए। सोचिए कि यह सूचना क्या कम घृणित है कि ऐन गांधी जयंती के दिन बांग्लादेश में हिंदू समाज की 8 साल से 70 साल तक की औरतों के साथ मुस्लिम लोगों द्वारा सामूहिक बलात्कार किया गया।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आए दिन अल्पसंख्यक समाज के परिवार की बहन बेटियों को बहुसंख्यक मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा उठा लिए जाने की खबर आती ही रहती है। खास कर सिख समाज और सिंधी समाज की बेटियों को। इस पर तो कहीं से कोई आवाज़ नहीं उठती। और इसी मुस्लिम समाज के बलात्कारी, आतंकी घुसपैठियों को भारतीय नागरिक बनाने से इतनी मुहब्बत? इस मुहब्बत के मायने अच्छी तरह समझा जा सकता है। वह सिर्फ मुस्लिम वोट को अपनी झोली में रखने की येन-केन-प्रकारेण प्रतिबद्धता ही है, कुछ और नहीं। बाकी, संविधान, धर्मनिरपेक्षता आदि हाथी के दिखाने वाले दांत हैं, खाने वाले नहीं। तो क्या भारतीय मुसलमान इतने मूर्ख हैं? अभी तक? अगर नहीं तो आंख क्यों नहीं खुलती इन की?