श्राइन बोर्ड के गठन से बदल जाएगी चारधाम की सूरत

चार धाम श्राइन बोर्ड के साहसिक फैसले पर आम आदमी खुश
हक हकूकधारी, पंडा समाज आग बबूला, फैसले का विरोध शुरू

देहरादून : उत्तराखंड की चार धाम यात्रा के और बेहतर संचालन के लिए श्राइन बोर्ड के गठन के फैसले को मील का पत्थर माना जा रहा है। भले ही हक हकूकधारियों और पंडा समाज इस फैसले से आगबबूला हों लेकिन ज्यादातर लोगों का मानना है कि इस फैसले के अमल में आने के बाद चार धाम यात्रा की सूरत बदल जाएगी। वैसे, इस पूरे प्रकरण में यह बात काबिलेगौर है कि यात्रा विकास के लक्ष्य को त्रिवेंद्र सरकार ने सारी बातों पर तरजीह दी है। जिस हिंदुत्व के एजेंडे से भाजपा की नजदीकी है और जिसमें हक हकूकधारियों और पंडा समाज की खास भूमिका रेखांकित है, उसके दबाव को भी दरकिनार कर सरकार आगे बढ़ी है।

दरअसल, उत्तराखंड राज्य निर्माण से पहले से चार धाम श्राइन बोर्ड के गठन की जरूरत महसूस की जा रही है। मगर हक हकूकधारियों और पंडा समाज के दबाव के आगे यह विचार कभी प्रमुखता से आगे नहीं बढ़ पाया। एनडी तिवारी सरकार श्राइन बोर्ड जैसा साहसिक फैसला तो नहीं ले पाई लेकिन उसने इस विचार से मिलता जुलता चार धाम यात्रा विकास परिषद के गठन का निर्णय जरूर ले लिया था। चूंकि इसका कोई अपना एक्ट नहीं था, लिहाजा यह असरहीन साबित हुआ। अब सरकार ने श्राइन बोर्ड एक्ट बनाने का निर्णय किया है और बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री समेत 50 से ज्यादा मंदिरों को श्राइन बोर्ड का वह हिस्सा बनाने जा रही है।

उत्तराखंड की मौजूदा चार धाम यात्रा व्यवस्था की जो स्थिति है, उसमें एक बात खास है। वह बेतरतीब ढंग से जरूर चलती है लेकिन इसके बावजूद बड़ी संख्या में यात्री उत्तराखंड आते हैं। इस बार के ही यात्रा सीजन में यात्रियों की संख्या 30 लाख से ज्यादा रही है। दरअसल, बद्रीनाथ और केदारनाथ समेत तमाम छोटे बडे़ मंदिरों का संचालन यूपी के जमाने में बनी बद्री केदार मंदिर समिति करती है, जबकि गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिरों की यात्रा की व्यवस्था अलग अलग प्रशासनिक समिति देखती है। इस वजह से तालमेल का अभाव रहता है और यात्रियों को भी अपेक्षित सुविधाएं नहीं मिल पाती। श्राइन बोर्ड का गठन इन सभी बातों को दूर करने में मददगार साबित होगा।

सरकार मंदिर समिति की सारी व्यवस्था को श्राइन बोर्ड के एक्ट में शामिल करने जा रही है। जेहन में वैष्णो देवी और तिरूपति बाला जी मंदिरों की यात्रा व्यवस्था है। हालांकि सरकार ने भरोसा दिलाया है कि नई व्यवस्था में हक हकूकधारियों के अधिकार किसी भी रूप में प्रभावित नहीं होंगे लेकिन उन्हें सरकार की बात पर भरोसा नहीं है। इसलिए चार दिसम्बर से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र के पहले ही दिन हक हकूकधारियों ने सरकार को ताकत दिखाने की तैयारी कर ली है। सरकार को इसी सत्र में श्राइन बोर्ड का बिल सदन के पटल पर रखना है। वह भी इस मामले में फिलहाल पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com