वन्यजीव अनुसंधान संगठन एवं बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी करेंगी स्थापना
लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार विलुप्तप्राय गिद्धों के संरक्षण और उनकी आबादी बढ़ाने के लिए महाराजगंज की फरेंदा तहसील के भारी-वैसी गांव में प्रदेश का पहला ‘जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र’ स्थापित करेगी। गोरखपुर वन प्रभाग में 5 हेक्टेयर में स्थापित होने वाला यह केंद्र हरियाणा के पिंजौर में स्थापित देश के पहले जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र की तर्ज पर विकसित किया जाएगा। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) सुनील पांडेय ने बताया कि इस केंद्र की स्थापना वन्यजीव अनुसंधान संगठन और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी द्वारा संयुक्त रूप से की जायेगी। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) ने इस केंद्र की डीपीआर तैयार की है। कैंपा योजना के तहत धन की व्यवस्था के लिए डीपीआर भेजी गई है। सर्वेक्षण का काम करीब 60 प्रतिशत तक पूरा कर लिया गया है।
वन महकमे के मुताबिक महाराजगंज वन प्रभाग के मधवलिया रेंज में इस वर्ष अगस्त माह में 100 से अधिक गिद्ध देखे गए थे। प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित गो सदन के निकट भी यह झुंड दिखा था। दरअसल पर्यावरण वन व जलवायु परिवर्तन के निर्देश पर विलुप्त हो रहे गिद्धों का सर्वे करने के लिए बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के वल्चर कंजर्वेशन पंचकूला शाखा के पक्षी विशेषज्ञ सोहगीबरवा सेंक्चुरी में आये थे। कई रेंजों का भ्रमण करने के बाद उन्हें निचलौल रेंज के मधवलिया गो सदन के पास गिद्ध मिले। एक साथ इतने गिद्ध दिखने को टीम के सदस्यों ने पर्यावरण के लिए सुखद संकेत माना था। तब टीम ने आसपास के लोगों को जागरूक भी किया कि वे गिद्धों को अपशकुन कतई न मानें। ये नेचर क्लीनर हैं। कई देशों में इन्हें गॉड आफ मैसेंजर माना जाता है। इनके संरक्षण से पर्यावरण का संरक्षण होगा।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) ने बताया कि गौ सदन में निर्वासित पशु रखे जाते हैं, जो वृद्ध होने के कारण जल्द ही मर जाते हैं। उन्होंने बताया मृत निर्वासित पशुओं के मिलने से यहां गिद्धों का दिखना स्वभाविक है, इसीलिए भारी वैसी गांव का चयन किया गया है। वर्ष 2013-14 की गणना के अनुसार 13 जिलों में लगभग 900 गिद्ध पाए गए थे। विशेषज्ञों के मुताबिक बीते 20 वर्षों में गिद्धों की संख्या में 99 प्रतिशत की कमी आई है। इसका मुख्य कारण पशुओं में डाइक्लोफिनेक दवा है। पशुओं के मरने के बाद भी इस दवा की मौजूदगी उसके शरीर में रहती है और गिद्ध जब उसे खाते हैं तो उनका जीवन संकट में पड़ जाता है।