महाराष्ट्र विवाद पर सरकार गठन संबंधी दस्तावेज तलब

नई दिल्ली : महाराष्ट्र में देवेन्द्र फड़नवीस के नेतृत्व में सरकार गठन की वैधता पर रविवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह कल (25 नवम्बर) को वह समर्थन पत्र कोर्ट में पेश करें, जिसके आधार पर महाराष्ट्र के राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने का फैसला किया। इस मामले पर सुनवाई 25 नवम्बर को भी जारी रहेगी। सुनवाई के दौरान शिवसेना की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर भाजपा के पास बहुमत है तो उन्हें आज ही विश्वास मत हासिल करने का आदेश दिया जाए। सिब्बल ने कहा कि राज्यपाल के पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है, जिससे साबित होता हो कि भाजपा के पास बहुमत है। राज्यपाल द्वारा भाजपा को सरकार बनाने का न्योता देना असंवैधानिक है और इस कार्यवाही का कोई रिकॉर्ड नहीं है। सबकुछ आनन-फानन में किया गया है। सिब्बल ने महाराष्ट्र में रातों-रात राष्ट्रपति शासन हटाने पर भी सवाल उठाए। सिब्बल ने कहा कि सारा शक 22 नवम्बर की शाम 7 बजे और 23 नवम्बर की सुबह 5 बजे के बीच का है। सिब्बल ने मांग की कि दोनों पक्षों को सदन में बहुमत साबित करने का मौका जल्द से जल्द दिया जाए।

कांग्रेस और एनसीपी की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एनसीपी के 54 विधायकों में से 41 ने हस्ताक्षर कर राज्यपाल को पत्र के जरिये अजीत पवार को एनसीपी विधायक दल का नेता पद से हटाने की सूचना दी। सिंघवी ने कहा कि पहले भी ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया है ताकि हॉर्स ट्रेडिंग से बचा जा सके। फ्लोर टेस्ट से सारी अनिश्चितताओं पर विराम लग जाएगा। सिंघवी ने जगदंबिका पाल केस का उदाहरण रखा। उन्होंने कहा कि अजीत पवार को उप-मुख्यमंत्री बनाना लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है। अजीत पवार के पास संख्या नहीं है। सिंघवी ने एसआर बोम्मई केस का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि हॉर्स ट्रेडिंग रोकना असली मसला है। बोम्मई मामले की तरह ही इसका हल होना चाहिए।

भाजपा की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा कि राजनीतिक दल सीधे सुप्रीम कोर्ट नहीं आ सकते हैं, उन्हें पहले हाईकोर्ट जाना चाहिए था। मुकुल रोहतगी ने कहा कि सही प्रक्रिया में है कि दलों को नोटिस जारी कर तीन चार दिन के बाद सुनवाई हो। उन्होंने कहा कि 24 अक्टूबर से 9 नवम्बर के बीच अगर शिवसेना के पास संख्या थी तो 17 दिनों तक सरकार क्यों नहीं बनी। राज्यपाल ने देवेंद्र फडणवीस को सरकार बनाने का न्योता देकर सही काम किया है। रोहतगी ने कहा कि राज्यपाल के फैसले की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है। तब जस्टिस रमना ने कहा कि ये मामला हल हो चुका है, राज्यपाल किसी को भी शपथ नहीं दिला सकता है। रोहतगी ने कहा कि मेरा एक ही सवाल है कि क्या कोर्ट राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट कराने का निर्देश दे सकता है। तब जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि हम ये नहीं जानते कि राज्यपाल ने क्या कहा। तब मुकुल रोहतगी ने कहा कि हमें तीन दिन का समय दिया जाए। उन्होंने अचानक याचिका दायर की और रविवार को कोर्ट को डिस्टर्ब किया। उन्हें पहले रिसर्च करना चाहिए था। रोहतगी ने कहा कि धारा 212 के मुताबिक गलत प्रक्रिया अपनाने की वजह से किसी राज्य की विधायिका के काम पर सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता है। यह सदन का एकाधिकार है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वे केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं लेकिन उन्हें कोई निर्देश नहीं मिले हैं। तब जस्टिस रमना ने पूछा कि क्या आप कोई दलील रखना चाहते हैं। तब तुषार मेहता ने कहा कि हम जवाब दाखिल कर देंगे। तब कोर्ट ने आदेश दिया कि चूंकि राज्यपाल के 23 नवम्बर को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के फैसले को असंवैधानिक बताकर याचिका दायर की गई है, इसलिए केंद्र सरकार कल (25 नवम्बर को) राज्यपाल का पत्र कोर्ट में पेश करे। कोर्ट ने वह दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया, जिसके आधार पर देवेंद्र फडणवीस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया।

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