मुस्लिम शिक्षक की नियुक्ति के विरोध का मामला
संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के छात्रों का धरना
वाराणसी : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में सहायक प्रोफेसर पद पर डॉ. फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर आंदोलनरत छात्रों का समर्थन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने भी किया है। गुरुवार को धरनास्थल पर छात्रों को समर्थन देने पहुंचे स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने कहा कि यह कोई हिंदू और मुस्लिम के बीच का विवाद नहीं है। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय के अन्य संस्थानों में ही संस्कृत पढ़ाएं कोई आपत्ति नहीं, लेकिन नियमों का उल्लंघन करके संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में ही पढ़ाने की क्या जरूरत है। इस संकाय में मुस्लिम शिक्षक की नियुक्ति कर भारतीय सनातन संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास हो रहा है। पूर्व में बीएचयू के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने नियमों और सिद्धांतों को बनाया, उन नियमों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए ही संकाय के छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं। स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने आंदोलनकारी छात्रों से कहा कि जरूरत पड़ी तो संत समाज भी आगे आएगा।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में मुस्लिम शिक्षक की नियुक्ति को लेकर छिड़ा विवाद थम नही रहा। आन्दोलन कारी छात्रों केे समर्थन में संत समुदाय भी आगे आने लगा है। श्रीमुख गोपालगंज, बिहार के संत सर्वेश तिवारी ने कहा कि इस विवाद में यह समझना सबसे आवश्यक है, कि प्रो. फिरोज खान की नियुक्ति केवल संस्कृत पढ़ाने के लिए नहीं हुई है। उनकी नियुक्ति ‘संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय’ में हुई है। वह संकाय जिसमें धर्म पढ़ाया जाता है। उन्होंने कहा कि बीएचयू में संस्कृत के दो संकाय हैं। एक वह जिसमें संस्कृत भाषा पढ़ाई जाती है, दूसरा संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय, जिसमें वैदिक संस्कार सिखाये जाते हैं। प्रो. खान की नियुक्ति यदि केवल मेघदूत और अभिज्ञान शाकुंतलम पढ़ाने के लिए हुई होती तो कोई विवाद ही नहीं होता। प्रशासन अब से भी उनकी नियुक्ति ‘कला-संस्कृत संकाय’ में कर दे तो कोई दिक्कत नहीं होगी। संस्कृत कोई भी पढ़ा और पढ़ सकता है, पर वेद और उपनिषद वही पढ़ा सकता है जिसके संस्कार में वेद हो। उन्होंने कहा कि धर्म को धारण किया जाता है। जिसने सनातन धर्म को धारण ही नहीं किया, वह धर्म पढ़ा कैसे सकता है? वेद और उपनिषद केवल पुस्तकें नहीं हैं, संस्कार हैं। प्रो. खान कितने भी बड़े विद्वान हों, उनमें सनातन संस्कार नहीं हैं।