जिंदगी भर लड़ा मुकदमा, पर न टूटी परमहंस और हाशिम की दोस्ती की डोर, सभी की जुबान पर उनकी चर्चा…

 सबसे बड़े विवाद के दो विपरीत ध्रुव रहे दिवंगत रामचंद्रदास परमहंस एवं हाशिम अंसारी की दोस्ती की चर्चा हर किसी की जुबान पर है। यही दोनों शख्स थे, जो पहली बार मुकदमा दायर करने कचहरी गए। दशकों तक मुकदमा लड़े, पर उनकी दोस्ती हिमालय की तरह अडिग रही। जब भी कचहरी जाते, एक ही रिक्शा अथवा तांगा का इस्तेमाल करते। कचहरी में अपने वकीलों से मिल कर पेशी निपटाते, फिर वापस भी साथ ही लौटते।

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने जिस ऐतिहासिक मुकदमे का फैसला शनिवार को सुनाया, उसे 22/23 दिसंबर 1949 को विवादित ढांचे में रामलला की मूर्ति प्रकट होने के बाद हाशिम अंसारी ही फैजाबाद कोर्ट लेकर गए थे। उनके खिलाफ हिंदू पक्ष के पैरोकार दिगंबर अखाड़ा के महंत रामचंद्र दास परमहंस थे। …लेकिन इनके आपसी रिश्ते में कभी तल्खी नहीं आई। पेशी पर हमेशा एक ही रिक्शे पर बैठ कर जाते थे। कचहरी जाने के लिए तांगा का प्रयोग किया तो एक ही। परमहंस के पास कार हो गई तो वह भी बिना हाशिम को साथ लिए कचहरी नहीं गए। अदालत की तीखी बहस उनकी दोस्ती को कभी विचलित नहीं करती। कचहरी के बाहर जब भी सामने होते पूरे उत्साह से मिलते। साथ चाय भी पीते थे। अखाड़े में बैठकर दोनों लोग देर शाम तक ताश खेलते।

अयोध्या से जुड़े लेखक संतोष तिवारी ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि महंत रामचंद्र परमहंस की मौत की खबर हाशिम अंसारी को अंदर तक हिला गई। वे पूरी रात उनके शव के पास ही बैठे रहे और दूसरे दिन अंतिम संस्कार के बाद ही अपने घर गए। उन्होंने परमहंस को सदैव अपना मित्र माना और जीवन के अंत में तो यहां तक कहने लगे कि रामलला का अब टेंट में रहना उनसे भी देखा नहीं जाता।

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