डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं में विदेशी नागरिक भी दिखे। अहोई अष्टमी पर्व पर रात्रि 12 बजे से मंगलवार तड़के 4 बजे तक स्नान हुआ। अहोई अष्टमी स्नान की संध्या पर राधारानी कुंड के घाटों पर घी के दीपक जलाए गए। विश्व शांति के लिए दीपदान किया गया। रघुनाथ दास गोस्वामी गद्दी के महंत अनंत दास महाराज के देश-विदेश से पहुंचे हजारों शिष्यों ने मंगलवार तड़के कार्तिक स्नान किया। पंडा सुरेश चन्द्र ने बताया कि ब्रज में वैसे तो जगह-जगह कृष्ण की लीलाओं के आज भी साक्ष्य प्रमाण मिलते हैं, लेकिन गोवर्धन के राधाकुंड में अहोई अष्टमी की मध्यरात्रि को स्नान करने से संतान की प्राप्ति होती है।
गौड़ीय संप्रदाय के संत भक्तिदास ने बताया कि भाद्रमास की अष्टमी तथा कार्तिक मास की अष्टमी का अलग-अलग महत्व है। योगीराज भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी वर्ष में केवल एक बार मनाई जाती हैं, जबकि श्री राधारानी की जन्माष्टमी वर्ष में दो बार मनाई जाती हैं। राधारानी का पहला जन्म भादों मास की अष्टमी के दिन राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। दूसरा जन्म कार्तिक मास की अष्टमी के रूप में मनाया जाता था, क्योंकि अहोई अष्टमी की अर्द्धरात्रि को श्री राधारानी ने अपने कंगन से राधारानी कंड को प्राकट्य किया था, जबकि श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से श्रीकृष्ण कुंड उत्पन्न किया था। इसमें श्रीराधारानी ने अहोई माता को वरदान दिया कि आज के दिन तेरी पूजा होगी और जो निसंतान दंपति कार्तिक मास अष्टमी की अर्द्धरात्रि को राधारानी कंड में स्नान करेगा उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में राधाजी ने राधाकुंड को अपने कंगन से खोदा था, इसलिए इसे कंगन कुंड भी कहा जाता है। कथानकों के अनुसार श्रीकृष्ण गोवर्धन में गौचारण लीला करते थे। इसी दौरान अरिष्टासुर ने गाय के बछड़े का रूप रख श्रीकृष्ण पर हमला किया।