आतंक के खिलाफ आरएसएस और भारत पर्यायवाची : डॉ कृष्ण गोपाल

नई दिल्ली  : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सहसरकार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल ने शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा कि आरएसएस और भारत पर्यायवाची शब्द हो गए हैं। पाकिस्तान द्वारा भारत और आरएसएस की बुराई करने से अब दुनिया को पता चल गया है कि आरएसएस आतंक के खिलाफ खड़ा है। डॉ कृष्ण गोपाल ने पूर्व सिविल सेवा अधिकारी मंच द्वारा “धर्म की ग्लानि” विषय पर आयोजित दो दिवसीय व्याख्यान माला के उद्घाटन सत्र के दौरान एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केवल भारत के लिए ही है। इसकी दुनिया में कहीं कोई शाखा नहीं है। पाकिस्तान आरएसएस से नाराज है क्योंकि वह भारत से नाराज है। अब आरएसएस और भारत पर्यायवाची शब्द हो गए हैं और यही हम चाहते हैं कि विश्व भी इस बात को समझे। डॉ कृष्ण गोपाल ने आगे कहा कि इमरान खान दुनिया में प्रचारित कर रहे हैं कि आरएसएस और भारत एक है। वह दुनिया में बिना कुछ कहे आरएसएस का नाम पहुंचा रहे हैं। भारत के आतंक के विरोध से दुनिया के सज्जन लोगों को समझ में आ रहा है कि आरएसएस आतंक के खिलाफ है।

इससे पूर्व उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत गीता के श्लोक ‘यदा-यदा ही धर्मस्य..’ से करते हुए कहा कि महान परंपरा को लेकर चलने वाले समाज को अपने बेहतर भविष्य के लिए समय-समय पर अपने इतिहास का अवलोकन करना चाहिए। उन्होंने इतिहास को तीसरी आंख की संज्ञा दी। समाज में पेश आने वाली समस्याओं का हल खोजने के लिए उन्होंने वेदों के अध्ययन की सलाह देते हुए कहा कि वेदों का दर्शन और निर्देश शाश्वत और सर्वकालीन है। भारत की आध्यात्मिकता पर सवाल खड़ा करने वालों को जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि भारत जितना आध्यात्मिक हुआ उतना ही भौतिक रूप से प्रगतिशील भी हुआ है। उन्होंने कहा कि भारत आध्यात्मिक हो गया, लोग समाधि में चले गए, पूजा पाठ में लग गए, राम-राम का जाप करने लगे ऐसा कहने वाले भारत को असल में जानते ही नहीं हैं।

कृष्णगोपाल ने जाति प्रथा और छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों का जिक्र करते कहा कि जातियों में बंटने से देश में चरित्र की कमी आने लगी। दुनिया के अन्य देशों में दास प्रथा थी। ऐसा व्यक्ति पीढ़ी दर पीढ़ी बिकता ही रहता था। यह दास प्रथा हमारे यहां नहीं आई लेकिन यह सच बात है कि अस्पृश्यता केवल भारत में ही आई। वेद, उपनिषदों और ग्रंथों में इसका जिक्र तक नहीं है लेकिन बाद में यह समाज में आ गई। एक समय ऐसा आया जब मनुष्य दूसरे मनुष्य को छूने तक से डरने लगा। उन्होंने कहा कि अध्यात्म हमारे देश की आत्मा है और वही हमारी विशेषता है। यदि वह नष्ट हो गया तो कुछ भी शेष नहीं बचेगा। अध्यात्म ने देश को एक दृष्टि दी है। सर्वत्र ईश्वर के भाव ने देश के चिंतन को एक मौलिक आयाम दिया है। आध्यात्मिक दर्शन को मन में स्थापित कर विवेक के द्वारा जीवन जीना ही धर्म है।

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