श्राद्ध की सभी तिथियों में अमावस्या को पड़ने वाली श्राद्ध का तिथि का विशेष महत्व होता है। आश्विन माह की कृष्ण अमावस्या को सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या कहते हैं। यह दिन पितृपक्ष का आखिरी दिन होता है। अगर आपने पितृपक्ष में श्राद्ध कर चुके हैं तो भी सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करना जरूरी होता। इस दिन किया गया श्राद्ध पितृदोषों से मुक्ति दिलाता है। साथ ही अगर कोई श्राद्ध तिथि में किसी कारण से श्राद्ध न कर पाया हो या फिर श्राद्ध की तिथि मालूम न हो तो सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या पर श्राद्ध किया जा सकता है।
शास्त्र कहते हैं कि “पुन्नामनरकात् त्रायते इति पुत्रः” जो नरक से त्राण ( रक्षा ) करता है वही पुत्र है ।श्राद्ध कर्म के द्वारा ही पुत्र पितृ ऋण से मुक्त हो सकता है इसीलिए शास्त्रों में श्राद्ध करने कि अनिवार्यता कही गई है ।जीव मोहवश इस जीवन में पाप-पुण्य दोनों कृत्य करता है, पुण्य का फल स्वर्ग है और पाप का नर्क ।नरक में पापी को घोर यातनाएं भोगनी पड़ती हैं और स्वर्ग में जीव सानंद रहता है !
स्वर्ग-नरक का सुख भोगने के पश्च्यात जीवात्मा पुनः चौरासी लाख योनियों की यात्रा पर निकल पडती है अतः पुत्र-पौत्रादि का यह कर्तव्य होता है कि वे अपने माता-पिता तथा पूर्वजों के निमित्त श्रद्धापूर्वक ऐसे शास्त्रोक्त कर्म करें जिससे उन मृत प्राणियों को परलोक अथवा अन्य लोक में भी सुख प्राप्त हो सके। शास्त्रों में मृत्यु के बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्म विपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है।