धिक्कार है, ऐसी हिंदी के ऐसे नपुंसक और कायर हिंदी लेखकों और पत्रकारों पर !

दयानंद पांडेय

लखनऊ : कुछ लोगों के लिए हिंदी को हिंदी कहना भी भारत माता की जय बोलने जैसा अपराध हो गया है। हराम हो गया है। वह हिंदी शब्द बोलने से भी परहेज करते हैं। तुर्रा यह कि ऐन हिंदी दिवस के दिन भाकपा महासचिव डी राजा हिंदी को हिंदुत्व की भाषा बता देते हैं। ओवैसी हिंदी, हिंदू, हिंदुत्व की बात करते हैं लेकिन हिंदी लेखकों और पत्रकारों की कायर और नपुंसक जमात डी राजा और ओवैसी की इस गलीज और नीच बात पर सांस खींचकर बैठ गई है। चूं तक नहीं कर पाए यह लेखक और पत्रकार। बात, बेबात निंदा प्रस्ताव जारी करने वाले यह लेखक और पत्रकार दुम दबाकर किसी दड़बे में सो गए। एक भी लेखक या पत्रकार संगठन की नींद नहीं टूटी। तो क्या सचमुच हिंदी, हिंदू की भाषा है? हिंदुत्व की भाषा है? धिक्कार है, ऐसी हिंदी के ऐसे नपुंसक और कायर हिंदी लेखकों और पत्रकारों पर। दिन-रात, लफ्फाजी और जुगाली के अभ्यस्त इन हिंदी लेखकों, पत्रकारों और लेखक, पत्रकार संगठनों को कुछ कहेंगे आप लोग? बिना गाली-गलौज और अपशब्द के।

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