संविधान निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर अनुच्छेद 370 के धुर विरोधी थे। उन्होंने इसका मसौदा तैयार करने से इनकार कर दिया था। आंबेडकर के मना करने के बाद शेख अब्दुल्ला नेहरू के पास पहुंचे और प्रधानमंत्री के निर्देश पर गोपालस्वामी अयंगर ने मसौदा तैयार किया था। बता दें कि सोमवार 5 अगस्त 2019 की तारीख में स्वतंत्र भारत का नया इतिहास लिख दिया गया। 17 अक्टूबर 1949 को संविधान में राष्ट्रपति के आदेश से जोड़े गये अनुच्छेद 370 को उसी तरीके से खत्म कर दिया गया।
अब्दुल्ला को लिखा पत्र
अब्दुल्ला को अनुच्छेद 370 पर लिखे पत्र में आंबेडकर ने कहा था कि आप चाहते हैं कि भारत जम्मू-कश्मीर की सीमा की रक्षा करे, यहां सड़कों का निर्माण करे, अनाज सप्लाई करे। साथ ही कश्मीर को भारत के समान अधिकार मिले, लेकिन आप चाहते हैं कि कश्मीर में भारत को सीमित शक्तियां मिलें। ऐसा प्रस्ताव भारत के साथ विश्वासघात होगा, जिसे कानून मंत्री होने के नाते मैं कतई स्वीकार नहीं करूंगा।
पटेल को नहीं किया था सूचित
नेहरू ने पटेल को सूचित किए बिना ही शेख अब्दुल्ला के साथ अनुच्छेद 370 के मसौदे को अंतिम रूप दिया। संविधान सभा की चर्चा में मसौदे को पारित करवाने की जिम्मेदारी गापालस्वामी अयंगर को मिली। लेकिन प्रस्ताव को सभ में मौजूद सदस्यों द्वारा फाड़ दिया गया। उस समय प्रधानमंत्री नेहरू अमेरिका में थे। सरदार और अब्दुल्ला के रिश्ते ठीक नहीं थे। ऐसे में अयंगर ने मदद के लिए वल्लभभाई पटेल को रुख किया। उन्होंने पटेल से कहा कि यह मामला नेहरू के अहम से जुड़ा है, नेहरू ने शेख को उनके अनुसार ही फैसले लेने को कहा है। लिहाजा, वल्लभभाई पटेल ने मसौदे को स्वीकृति दे दी।
हुआ था भारी विरोध
हालांकि, जब पटेल ने कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की बैठक में मसौदे को पेश किया तो सभी ने इसका भारत की संप्रभुता के लिए खतरा बताया। यहां तक कि भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद ने भी इसका विरोध किया था।
कौन थे गोपालस्वामी अयंगर
गोपालस्वामी अयंगर का जन्म 31 मार्च 1882 को तमिलनाडु में हुआ था। 1905 में वह मद्रास सिविल सेवा में शामिल हुआ और डिप्टी कलेक्टर और राजस्व बोर्ड के सदस्य सहित कई पदों पर रहे। वह संविधान सभा सदस्य भी थे। इसके साथ ही वह उस प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख भी थे जिसने कश्मीर पर लगातार विवाद में संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व किया। अयंगर को 1937 में दीवान बहादुर की उपाधि से सम्मानित किया गया था। यह एक ब्रिटिश वायसराय द्वारा दिया गया सर्वोच्च खिताब थे। 1941 में, उन्होंने किंग जॉर्ज षष्टम से नाइटहुड प्राप्त किया। वह जम्मू-कश्मीर के महाराज हरि सिंह के दीवान भी रहे। 10 फरवरी, 1953 को उनका देहातं हो गया।
संयुक्त राष्ट्र पहुंचा जम्मू-कश्मीर का मामला
यह माउंटबेटन थे, जिन्होंने नेहरू को जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने के लिए राजी किया था। इसलिए तो पाकिस्तान बार-बार कहता है कि कश्मीर विवाद को भारत ही संयुक्त राष्ट्र लेकर गया था। गौरतलब है कि गृह मंत्री शाह ने रास में कहा कि हम वही तरीका अपना रहे हैं जो 1952 व 1962 में कांग्रेस ने अपनाया था। तत्कालीन कांग्रेस सरकारों ने अधिसूचना के माध्यम से ही इस अनुच्छेद में संशोधन किए थे। सपा के प्रो. राम गोपाल यादव ने इस पर शाह से पूछा था कि क्या बगैर संविधान संशोधन विधेयक लाए संविधान में संशोधन हो सकता हो सकता है? इस पर शाह ने उक्त स्पष्टीकरण दिया।