अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को चुनौती देने के लिए चीन अत्यधिक शक्तिशाली रॉकेट का निर्माण कर रहा है। मार्च-9 नाम का यह रॉकेट नासा के रॉकेट से अधिक भार पृथ्वी की निचली कक्षा में ले जाने में सक्षम होगा। इसके 2030 में बनकर तैयार होने का अनुमान है।
अमेरिका-यूरोप को चुनौती
यूरोप का एरियन 5 रॉकेट सिर्फ 20 टन भार ले जा सकता है। अमेरिकी उद्योगपति एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स का फाल्कन हेवी रॉकेट 64 टन वजन ले जाने में सक्षम है। 2020 में तैयार होने वाला नासा का स्पेस लांच सिस्टम 130 टन वजन ले जा सकेगा लेकिन तब भी चीन के मार्च-9 से पीछे रहेगा। चीन का यह प्रस्तावित रॉकेट 140 टन वजन ले जाने में सक्षम होगा। वर्तमान में पृथ्वी की निचली कक्षा में टीवी और अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट चक्कर काट रहे हैं।
इस रॉकेट का इस्तेमाल चांद पर मानवों को उतारने, सुदूर अंतरिक्ष का अध्ययन करने और अंतरिक्ष में सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने में किया जा सकेगा। इसके जरिए वह अंतरिक्ष क्षेत्र में अमेरिका और रूस के वर्षों के प्रभुत्व को पीछे छोड़ने की कोशिश में है।
अन्य योजनाएं
चीन चंद्रमा पर बेस तैयार करने की योजना पर काम कर रहा है। उसमें यह रॉकेट बड़ी भूमिका निभाएगा।
2022 तक अंतरिक्ष में क्रू सहित स्पेस स्टेशन बनाने और जल्द ही लोगों को चंद्रमा पर भेजने की तैयारी कर रहा है।
ऐसा स्पेस रॉकेट बनाने की तैयारी में है जिसे बार-बार इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसके 2021 में पहली उड़ान भरने की संभावना है।
लांग मार्च रॉकेट चीन की सरकार के द्वारा संचालित एक्सपेंडेबल लांच सिस्टम का एक रॉकेट परिवार है। इसका विकास और डिजाइन चीन अकादमी प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी में किया गया। रॉकेट का नाम चीनी कम्युनिस्ट इतिहास के लांग मार्च की घटना के बाद नामित किया गया।
लेकिन बीते तीन दशकों में चीन ने अंतरिक्ष अभियान में अरबों डॉलर झोंके हैं। बीजिंग ने रिसर्च और ट्रेनिंग पर भी खासा ध्यान दिया है। यही वजह है कि 2003 में चीन ने चंद्रमा पर अपना रोवर भेज दिया और वहां अपनी लैब बना दी।