अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प यदि H-1B वीजाधारकों के पति या पत्नी को अमेरिका में काम करने की इजाजत न देने के निर्णय पर अड़े रहते हैं तो इससे अमेरिका को ही काफी मुश्किल हो सकती है. अमेरिकी टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री को प्रतिभाओं के अकाल का सामना करना पड़ सकता है. साउथ एशियन अमेरिकन पॉलिसी ऐंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (SAAPRI) की एक स्टडी में यह बात सामने आई है.
गौरतलब है कि अमेरिका में बराक ओबामा के राष्ट्रपति कार्यकाल से ही H-1 वीजाधारकों के पति या पत्नी को भी अमेरिका में नौकरी करने की इजाजत देने की नीति चल रही है. लेकिन ट्रम्प प्रशासन ने अब इसे पलट देने का प्रस्ताव रखा है.
SAAPRI ने ऐसे 100 से ज्यादा प्रभावित लोगों के बीच सर्वे किया. H-1 वीजाधारक के पति या पत्नी के वीजा को तकनीकी भाषा में H-4 EAD वीजा कहते हैं. इस वीजा का सबसे ज्यादा फायदा भारत सहित दक्षिण एशियाई लोगों को मिलता है. साल 1997 से 2017 के बीच दक्षिण एशिया के लोगों को H-4 EAD जारी करने की संख्या 18,979 से बढ़कर 1,18,451 तक पहुंच गई.
काफी योग्य हैं H-4 EAD वीजा धारी
फिलहाल H-4 EAD वीजा का 93 फीसदी हिस्सा दक्षिण एशियाई लोगों को मिलता है. इनमें 93 फीसदी हिस्सा औरतों का होता है. सर्वे के अनुसार H-4 EAD वीजा हासिल करने वाले 77.78 फीसदी लोगों के पास मास्टर डिग्री या डॉक्टरेट डिग्री थे, यानी वे काफी पढ़े-लिखे थे.
इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, 20 फीसदी H-4 EAD वीजाधारकों का कहना है कि नियम में बदलाव से पहले भी उन्हें अपने संबंधित क्षेत्र में नौकरी नहीं मिली और सुरक्षित नौकरी के लिए उन्हें अपना पसंदीदा क्षेत्र छोड़ना पड़ा. सर्वे में शामिल 63 फीसदी लोगों ने यह संकेत दिया है उन्हें H-4 EAD वीजा मिलने के बाद भी उन्हें नौकरी खोजने में काफी मुश्किल आई.
नियम बदलने से बढ़ेगी मुश्किल
सर्वे के अनुसार ट्रम्प प्रशासन द्वारा H-1 और H-4 EAD वीजा के बारे में नियम बदलने से ऐसे लोगों को नौकरी मिलना और कठिन हो जाएगा. इससे करीब 10 साल तक ऐसे लोग बिना किसी काम के रहेंगे. यह बेहद चिंताजनक बात होगी, क्योंकि करीब 75 फीसदी H-4 EAD वीजा धारकों के बच्चे हैं और इनमें से 26 फीसदी के पास दो या उससे ज्यादा बच्चे हैं. इनमें से 85 फीसदी बच्चे अमेरिकी नागरिक बन गए हैं.
अमेरिका की टेक इंडस्ट्री पर होगा बुरा असर
सर्वे में शामिल 80 फीसदी से ज्यादा H-4 EAD वीजा धारकों ने कहा है कि वे अब विदेश से आने वाले लोगों को यही सलाह देंगे कि वे अमेरिका न आएं. इससे अमेरिकी टेक इंडस्ट्री में प्रतिभाओं का अकाल हो सकता है. गौरतलब है कि सिलिकॉन वैली की अमेरिकी टेक इंडस्ट्री में बड़े पैमाने पर भारतीयों सहित दक्षिण एशियाई लोग काम कर रहे हैं और वे इस इंडस्ट्री का आधार हैं. सिलिकॉन वैली में शुरू हुए स्टार्ट-अप का करीब 25 फीसदी हिस्सा प्रवासियों के द्वारा ही शुरू किया गया है.
करीब 75 फीसदी लोगों का कहना है कि इससे अमेरिका की मौजूदा इमिग्रेशन नीति पर चोट पहुंचेगी. कई लोगों का कहना है कि वे अब दूसरे देशों में अवसर की तलाश करेंगे. 30 फीसदी लोगों का कहना है कि वे कोई कारोबार शुरू कर सकते हैं.