मोदी सरकार के राज में स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राशि पिछले चार साल में पहली बार बढ़ी है. पिछले साल यह राशि एक अरब स्विस फ्रैंक (7,000 करोड़ रुपये) के दायरे में पहुंच गई. लेकिन एक वक्त वो भी था, जब स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा 41400 करोड़ के स्तर पर पहुंच गया था.
स्विस बैंकों में भारतीयों की तरफ से पैसे रखने के मामले में पिछले 12 सालों में काफी ज्यादा कमी आई है. कांग्रेस राज में यह आंकड़ा एक वक्त में रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गया था. साल 2006 में इसने 41400 करोड़ का आंकड़ा छुआ था. 2014 में जब मोदी सरकार आई, तो उस दौरान स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा घटकर 14 हजार करोड़ पर पहुंच गया था.
देश में 2004 से 2014 तक कांग्रेस की सरकार रही. इस दौरान भी स्विस बैंक में छुपे काले धन को लेकर चर्चा होती थी. हालांकि उस समय स्विस बैंकों के नियम कड़े होने की वजह से इन बैंकों में खाता रखने वाले लोगों की जानकारी निकाल पाना मुश्किल होता था. हालांकि धीरे-धीरे हालात बदले और स्विट्जरलैंड के बैंकों ने अपने नियमों में थोड़ा ढील देना शुरू किया.
कांग्रेस राज में भी कम हुआ आकंड़ा:
स्विस नेशनल बैंक के आंकड़ों को देखें तो 2006 में 41400 करोड़ के रिकॉर्ड हाई स्तर पर पहुंचने के बाद स्विस बैंक में भारतीयों का पैसा कम हुआ है. 2006 के बाद 2007 में यह आंकड़ा 27500 करोड़ रुपये पर पहुंचा. इसी तरह 2008 में 15400 करोड़, 2009 में 12600 करोड़, 2010 में यह आंकड़ा घटकर 12450 करोड़ पर पहुंचा.
इसके बाद 2011 में एक बार फिर इसमें बढ़ोतरी हुई और स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा बढ़कर 14000 करोड़ पर पहुंच गया. 2012 में फिर इसमें गिरावट आई और यह 9000 करोड़ रुपये पर आ गया. इसके बाद 2013 में एक बार फिर यह आंकड़ा 14 हजार करोड़ पर पहुंचा. जून, 2014 में जब मोदी सरकार ने देश की कमान संभाली, तो इस दौरान स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा 10.6 फीसदी घटकर 12,615 करोड़ पर पहुंच गया था.
मोदी राज में हुई रिकॉर्ड गिरावट:
2014 के आम चुनावों में स्विस बैंकों में छुपा काला धन सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काला धन वापस लाने को लेकर वादे भी किए. इसके बाद मोदी सरकार के 4 साल के कार्यकाल में काले धन पर लगाम कसने के लिए कई कदम उठाए गए. मोदी सरकार के कार्यकाल में 2015 में यह आंकड़ा 8392 करोड़ पर आया. वहीं, 2016 में इसमें रिकॉर्ड कमी आई और यह 4500 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंचा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चार साल के कार्यकाल में काले धन के खिलाफ कई कदम उठाए हैं. लेकिन सिर्फ मोदी सरकार के प्रयासों से इसमें सफलता नहीं मिली है. स्विस बैंक हमेशा से काले धन के लिए सेफ हेवन बनने की वजह से आलोचकों के निशाने पर रहे हैं. 2010 के बाद से दुनियाभर के कई देशों ने स्विस सरकार पर दबाव बनाना शुरू किया ताकि वे अपने कड़े नियमों को आसान कर काले धन यहां छुपाने वालों पर अंकुश लगाए.
नियमों में ढील से भी कम हुई जमा राशि:
इसके बाद स्विट्जरलैंड ने काफी समय तक इसका विरोध किया, लेकिन आखिर यहां की सरकार अपने बैंकिंग नियमों में ढील देने को तैयार हुई. इसके बाद स्विस सरकार ने कई देशों के साथ संधि की. इसमें भारत भी शामिल है. इस संधि के तहत स्विट्जरलैंड संबंधित देश के खाताधारकों की जानकारी कुछ शर्तों के साथ साझा करने के लिए तैयार हुआ. इस वजह से कई लोगों ने स्विस बैंकों से अपना पैसा निकालना शुरू कर दिया.
इसके साथ ही वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे दबाव के चलते स्विस बैंकों ने घरेलू स्तर पर ही अपने कारोबार को बढ़ाने पर फोकस करने की तरफ ध्यान देना शुरू किया. इसलिए इन्होंने न सिर्फ विदेशियों के लिए पैसा रखने के नियमों को कड़ा किया, बल्कि अपना फोकस देश में ही सेवा देने पर भी शिफ्ट किया. इससे भी कहीं-न-कहीं स्विस बैंकों में भारत समेत अन्य देशों की जमा राशि कम हुई.