बाल मजदूरी (Child Labour) उन्मूलन के लिए दुनिया भर में आज यानी 12 जून (June 12) को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (World Day Against Child Labour) मनाया जा रहा है। बाल मजदूरी के खिलाफ जागरूकता फैलाने और 14 साल से कम उम्र के बच्चों को इस काम से निकालकर उन्हें शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से इस दिवस की शुरुआत साल 2002 में ‘द इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन’ की ओर से की गई थी। बाल श्रम के खात्मे के लिए आज के दिन श्रमिक संगठन, स्वयंसेवी संगठन और सरकारें तमाम आयोजन करती हैं। इन सबके बावजूद बाल मजदूरी पर लगाम नहीं लग पा रही है।
भारत में एक करोड़ से ज्यादा बच्चे बाल श्रम को मजबूर
फिलहाल, भारत में बाल श्रम को लेकर व्यापक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन, साल 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 5 से 14 साल के 25.96 करोड़ बच्चों में से 1.01 करोड़ बाल श्रम के काम में लगे हैं। आंकड़ों के मुताबिक, साल 2001 में बाल श्रम में गिरावट की दर पांच फीसद थी जो 2011 में 3.9% दर्ज की गई। गिरावट की यह दर संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य (UN Sustainable Development Goals, SDGs) को पूरा करने में नाकाफी है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में लगभग 15.2 करोड़ बच्चे बाल श्रम के लिए मजबूर हैं। इनमें से अधिकांश बच्चे बदतर हालात में काम कर रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं की मानें तो भारत को बाल श्रम के खिलाफ लड़ाई में नए तरीकों को अपनाने की जरूरत है।
सात से आठ करोड़ बच्चे अनिवार्य शिक्षा से वंचित
बाल श्रम के खिलाफ काम कर रहे नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी के संगठन बचपन बचाओ आंदोलन(बीबीए) की रिपोर्ट कहती है कि भारत में लगभग सात से आठ करोड़ बच्चे अनिवार्य शिक्षा से वंचित हैं। इनमें अधिकांश बच्चे संगठित अपराध रैकेट (organised crime rackets) का शिकार होकर बाल मजदूरी के लिए मजबूर किए जाते हैं जबकि बाकी बच्चे गरीबी के कारण स्कूल का मुंह नहीं देख पाते। इतना ही नहीं सैकड़ों बच्चों को उनके अभिभावक ही अपने काम में मदद के लिए उन्हें स्कूल नहीं भेजते हैं। इसके अलावा हर साल हजारों बच्चों को तस्करी कर एक राज्य से दूसरे राज्यों में ले जाया जाता है। यहां तक कि बाल मजदूरी और बाल वेश्यावृत्ति के लिए इनकी खरीद फरोख्त की घटनाएं भी सामने आती हैं।