न्यूयॉर्क: अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने म्यांंमार के सैन्य प्रमुख और अन्य शीर्ष अधिकारियों पर रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ ‘‘सुनियोजित’’ हमले को लेकर मानवता के खिलाफ अपराध करने का आरोप लगाया है. मानवाधिकार समूह की एक रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत में मुकदमा चलाने का आह्वान किया गया है.
सेना की कार्रवाई के बाद 700,000 से ज्यादा रोहिंग्या मुस्लिमों को रखाइन प्रांत छोड़कर जाना पड़ा. संयुक्त राष्ट्र ने इसे ‘‘जातीय सफाया’’ बताया था. म्यांंमार की सेना ने अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की बात से इनकार किया और कहा कि वह मुस्लिम आतंकवादियों के खिलाफ अपनी रक्षा कर रही थी जिन्होंने अगस्त 2017 में पुलिस चौकियों पर हमला किया.
हालांकि एमनेस्टी की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि कमांडर इन चीफ मिन आंग हाइंग और 12 अन्य वरिष्ठ सैन्य एवं सुरक्षा अधिकारियों की देखरेख में अशांत प्रांत में हिंसा का अभियान चलाया गया. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘एक निर्मम और सुनियोजित अभियान चलाकर रोहिंग्या आबादी का जातीय सफाया किया गया जिसमें म्यांंमार के सुरक्षा बलों ने बच्चों समेत हजारों रोहिंग्या लोगों की गैरकानूनी तरीके से हत्या की.’’
उसने सुरक्षाबलों पर यौन हिंसा, प्रताड़ना, जबरन विस्थापन और बाजारों तथा खेतों को जलाने का भी आरोप लगाया जिसके चलते रोहिंग्या लोगों को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा. रिपोर्ट में कहा गया है कि ये अपराध अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत मानवता के खिलाफ अपराध हैं.
इससे पहले जून के पहले सप्ताह में म्यांमार और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये जो कि म्यांमार में सुरक्षा बलों के अत्याचार के चलते देश छोड़कर चले गए 700,000 रोहिंग्या मुस्लिमों की वापसी में सहायक हो सकता है. ये रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश में अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं. इस सहमतिपत्र में एक ‘सहयोग की रूपरेखा’ बनाने पर सहमति बनी है जिसका उद्देश्य रोहिंग्या शरणार्थियों की ‘स्वैच्छिक, सुरक्षित, सम्मानित और स्थायी’ वापसी के लिए स्थितियां निर्मित करना है.
म्यांमार के सुरक्षा बलों पर पश्चिमी रखाइन प्रांत में बलात्कार, हत्या, प्रताड़ना और रोहिंग्या के घरों को जलाने के आरोप हैं, जहां अधिकतर रोहिंग्या रहते थे. संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने गत वर्ष अगस्त में शुरू हुई कार्रवाई को ‘जातीय सफाया’ करार दिया था. म्यांमार और बांग्लादेश गत नवम्बर में रोहिंग्या की स्वदेश वापसी शुरू करने पर सहमत हुए थे. म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र के रेजीडेंट एंड ह्यूमैनिटैरियन कोआर्डिनेटर के. ओस्तबी ने कहा कि यह समझौता इस संकट के समाधान में पहला महत्वपूर्ण कदम है.