पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने को लेकर केंद्र सरकार लगातार अपना समर्थन जाहिर कर रही है. हालांकि पेट्रोलियम उत्पादों को जल्द जीएसटी के तहत लाने पर कोई फैसला होना मुश्किल लग रहा है. लेकिन नीति आयेाग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार की मानें तो यह काम मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव है.
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का कहना है, ”तेल को जीएसटी के दायरे में नहीं लाया जा सकता है. क्योंकि पेट्रोल पर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाया गया कर इस समय तकरीबन 90 फीसदी है.”
राजीव कुमार ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, ”मुझे नहीं लगता कोई भी राज्य इतने बड़े स्तर पर अपने कर में कटौती के लिए तैयार होगा. क्योंकि जीएसटी के तहत अधिकमत 28 फीसदी जीएसटी लग सकता है.” उनके मुताबिक इसके लिए जीएसटी की एक नई पट्टी बनानी होगी, जिसके लिए लंबी कवायद की जरूरत होगी.
राजीव ने अन्य सभी चीजों को नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के तहत लाने का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि जो लोग पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की बात कर रहे हैं, उन्होंने अभी इस तरह से विचार नहीं किया है.
उन्होंने कहा कि ऐसा करने का बेहतर तरीका यही हो सकता है कि पहले पेट्रोलियम उत्पादों पर कर घटाया जाए. यह मैं कई बार सार्वजनिक तौर पर बोल चुका हूं. राजीव ने कहा कि इसका राष्ट्रीयकरण करने की जरूरत है. राज्यों को पेट्रोल और डीजल पर लगने वाला कर घटाना चाहिए.
राजीव के मुताबिक केंद्र सरकार को तेल पर कर से 2.5 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है. इससे राज्य सरकारों को भी तकरीबन दो लाख करोड़ रुपये की आय होती है.
उन्होंने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसकी भरपाई कहां से करेंगे. उन्होंने इसके लिए कहा कि करों में धीरे-धीरे कटौती से ही समाधान निकलेगा. क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था पर बोझ घटेगा.
कुमार के मुताबिक तेल की ज्यादा कीमतें अर्थव्यवस्था पर एक कर के समान होती हैं. इसलिए अगर तेल की कीमतें घटती हैं, तो इससे आर्थिक गतिविधियों में भी सुधार होगा.
बता दें कि वित्त मंत्री अरुण जेटली से लेकर पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान समय-समय पर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने के लिए अपना समर्थन जाहिर कर चुके हैं. उनके मुताबिक इससे पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों से राहत मिलेगी.