लखनऊ : शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के तहत निजी स्कूलों को फीस प्रतिपूर्ति के संबंध में दिनांक 20 जून, 2013 को जारी शासनादेश को चुनौती देने वाली रिवरसाइड एकेडमी स्कूल की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ खण्डपीठ ने राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर एक जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए नोटिस जारी किया है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार द्वारा 2013 के शासनादेश के माध्यम से शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत अलाभित समूह एवं दुर्बल वर्ग के बच्चों को प्रवेश देने के लिए निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को प्रतिपूर्ति के रूप में प्रति माह जो रू.450/- की धनराशि तय की गई थी, उसे पिछले 6 वर्षों से संशोधित नहीं किया गया है।
शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(2) में वर्णित है कि सरकारी स्कूलों में प्रति-छात्र व्यय एवं निजी स्कूल की फीस में जो भी धनराशि कम होगी, उसी धनराशि की प्रतिपूर्ति निजी स्कूलों को की जायेगी। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश शिक्षा के अधिकार नियमावली 2011 के नियम 8(2) में सरकारी स्कूलों में प्रति-छात्र खर्च की गणना का फार्मूला भी दिया गया है, जिसे सरकारी गजट के माध्यम से प्रत्येक वर्ष की 30 सितम्बर को प्रकाशित करना अनिवार्य था, लेकिन सरकार ने अभी तक ऐसा नहीं किया।
याचिकाकर्ता ने आगे यह भी आरोप लगाया कि प्रतिपूर्ति राशि रु. 450/- शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(2) के खिलाफ तय की गई है, और यह 12 अप्रैल, 2012 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के भी खिलाफ है। यहाँ उल्लेखनीय है की अभी कुछ दिन पहले ही इसी न्यायालय ने एसोसिएशन आफ प्राइवेट स्कूल्ज बनाम स्टेट आफ यू.पी. में भी सरकार को इसी सम्बन्ध में नोटिस जारी किया था। यहाँ महत्वपूर्ण होगा की क्या सरकार अब सरकारी स्कूलों में हो रहे प्रति-छात्र व्यय को घोषित करेगी या माननीय न्यायालय के आदेश को किनारे करते हुए निजी स्कूलों पर अनैतिक दबाव बना कर फिर से आरटीई के तहत एडमिशन लेने पर मजबूर करेगी।