कन्नौज : सुब्रत ने समाजवादी किले में लगा दी सेंध

लखनऊ से किशोर विमल

किशोर विमल

देशभर में हुए आम चुनावों में यूं तो 542 सीटों पर हार – जीत हुई, लेकिन सबसे विशेष जीत-हार रही ऐतिहासिक कन्नौज की जहां एक जोशीले युवा सुब्रत पाठक ने प्रदेश की राजनीति के नामचीन घराने और निर्विरोध निर्वाचित होने का रिकार्ड बना चुकी डिम्पल यादव को हराकर जो राजनीतिक कामयाबी हासिल की वो वाकई काबिले तारीफ है। सम्राट हर्ष की नगरी कन्नौज को यूं तो देश की राजधानी होने का गौरव रहा है, लेकिन शनै—शनै ये क्षेत्र पिछड़ता चला गया, सियासी तौर पर आजादी के बाद और कन्नौज संसदीय सीट के अस्तित्व में आने के बाद से यहां समाजवादी विचारधारा के लिए बड़ा अनुकूल वातावरण रहा जिसे भांप कर ही डॉ लोहिया ने कन्नौज को अपनी कर्मभूमि बनाया जिसके बाद 80-90 के दशक से देश में समाजवाद की राजनीति की धुरी बन गए मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज की इसी नब्ज़ को पकड़ कर इसे अपनी पारिवारिक सीट बना लिया।

पहले खुद फिर अपने पुत्र अखिलेश को और उसके बाद पुत्र बधू डिम्पल यादव को कन्नौज के जरिये संसद पहुँचाकर इस सीट को अपनी राजनीतिक प्रयोगशाला बना डाला, यहां तक कि 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने अपनी सीट छोड़कर पत्नी डिम्पल को न सिर्फ चुनाव लड़वाया बल्कि डिम्पल को निर्विरोध सांसद होने का रिकार्ड भी बनवा दिया,लेकिन यहीं से कन्नौज की राजनीति में परिवर्तन की आहट सुनाई देने लगी थी, जब बीजेपी के एक स्थानीय जोशीले युवा सुब्रत पाठक ने जाति विशेष और कुछ चुनिंदा लोंगो में सिमट चुकी कन्नौज की राजनीति में खुलकर मोर्चा संभाला और अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने के थोड़े ही समय बाद हुए स्थानीय निकाय चुनाव में समाजवादी दबदबा ख़त्म कर अपनी माँ को कन्नौज नगर पालिका की अध्यक्षा बनवाया।

इसके बाद की सियासत में सुब्रत पूरी तरह समाजवादी राजनीति से संघर्ष में जुट गए और 2014 के संसदीय चुनावों में उन्होंने सपा उम्मीदवार डिम्पल यादव को न सिर्फ कड़ी टक्कर दी बल्कि समाजवादी खेमें को साफ संकेत दे दिया था कि आने वाले बक्त में कन्नौज में समाजवादी किले को ढहाने में वो ही अगुवाई करेंगें, सुब्रत को इसका खामियाजा भी उठाना पड़ा,और 2014 से 17 तक समाजवादी सरकार के कोपभाजन का शिकार भी हुए,लेकिन इस जोशीले युवा ने होश के साथ जोश बरकरार रखा,और पूरे संसदीय क्षेत्र में सभी जाति धर्म के लोंगों से जुड़कर अपना कारवां आगे बढ़ाता रहा और जाति विशेष की राजनीति के कॉकस खिलाफ मोर्चा संभाले रहा,परिणामस्वरूप 2019 का चुनाव परिणाम इस युवा के संघर्ष का रिपोर्ट कार्ड कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी।

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