उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों की संख्या 52 थी, पर मुकाबले में शुरू से आखिर तक भाजपा और कांग्रेस ही नजर आए। हरिद्वार और नैनीताल में बसपा ने इसे त्रिकोणीय बनाने का प्रयास जरूर किया। इसमें वह कितनी सफल हो पाई, नतीजे ही यह बताएंगे। करीब 80 फीसद साक्षरता दर वाले उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव के परिदृश्य पर नजर दौड़ाएं तो पूरे चुनाव अभियान के दौरान मोदी बनाम कांग्रेस के बीच लड़ाई सिमट रही।
भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर वोट मांगे और प्रधानमंत्री ने भी चुनावी रैलियों के दौरान खुद को वोट देने की अपील की। कांग्रेस ने अपने चुनावी अभियान के दौरान मुख्य रूप से प्रधानमंत्री मोदी पर ही निशाना रखा।
बसपा ने चार सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए और मैदानी भूगोल की दो सीटों नैनीताल और हरिद्वार में उसकी भरसक कोशिश रही कि वह मुख्य मुकाबले का हिस्सा बन सके। जबकि, महागठबंधन में शामिल सपा ने अपने खाते की सीटों पर भी प्रत्याशी नहीं उतारे।
चुनाव प्रधानमंत्री के इर्द गिर्द सिमटा होने के कारण अन्य मुद्दे चुनाव से करीब करीब गायब ही दिखे। हालांकि, कांग्रेस ने बेरोजगारी, महंगाई, राफेल जैसे मुद्दे उठाने की कोशिश की, मगर उसका अधिकांश वक्त मोदी पर निशाना साधने में ही बीता। भाजपा की तरफ से केंद्र की उपलब्धियों को जनता के बीच रखा गया, लेकिन उसका मुख्य फोकस ‘एक बार फिर मोदी सरकार’ के नारे पर केंद्रित रहा। मोदी बनाम अन्य की लड़ाई के चलते राज्य में राष्ट्रीय व स्थानीय स्तर के मसले गौण से हो गए। एक दूसरे के कामकाज को कसौटी पर नहीं रखा गया।