सनातन धर्म में ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस बार यह व्रत पर्व 24 जून रविवार को पड़ रहा है। एकादशी तिथि शनिवार को सुबह 5.50 बजे लग गई जो 24 जून को सुबह 5.31 बजे तक रहेगी। इसमें स्वाती नक्षत्र व सिद्धयोग का संयोग इसे खास बना रहा है। कई एकादशियों के पुण्यफल वाले निर्जला व्रत करने से आयु -आरोग्य के साथ अंतत: स्वर्गादि की प्राप्ति होती है।
ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार यदि कोई अधिक मास सहित एक वर्ष की 25 एकादशी न कर सके तो सिर्फ निर्जला एकादशी व्रत करने से संपूर्ण फल प्राप्त किया जा सकता है। शास्त्रों में कहा गया है कि अग्र जन्म में पुण्य संचय करने के लिए इस जन्म में जो लोग एकादशी व्रत करते हैं उन्हें जन्म-जन्मांतर में धर्म-अर्थ- काम-मोक्ष स्वयं प्राप्त हो जाता है।
निर्जला व्रत करने वाला व्रती अपवित्र अवस्था के आचमन के सिवा बिंदु मात्र भी जल ग्रहण न करें। यदि किसी प्रकार से जल उपयोग में ले लिया जाए तो व्रत भंग हो जाता है। दृढ़तापूर्वक नियम पालन के साथ निर्जल उपवास कर द्वादशी को स्नान और सामथ्र्य अनुसार स्वर्ण, जलयुक्त कलश, चीनी आदि का दान करना चाहिए। ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भोजन से संपूर्ण तीर्थों में स्नान समान फल मिलता है।
भीमसेन से बना भीमसेनी
महाभारत काल में बहुभोजीय भीमसेन ने व्यास जी के मुख से प्रत्येक एकादशी को निराहार रहने का नियम सुनकर विनम्र भाव से निवेदन किया कि महाराज मुझसे कोई व्रत नहीं किया जाता है। दिनभर बड़ी तीव्र क्षुधा बनी रहती है। अत: आप कोई ऐसा उपाय बता दीजिए जिसके प्रभाव से स्वत: सद्गति हो जाए।
तब व्यास जी ने कहा कि तुमसे वर्षभर की संपूर्ण एकादशी नहीं हो सकती है तो केवल एक निर्जला कर लो। इससे वर्षभर की एकादशी के समान फल प्राप्त हो जाएगा। इस पर भीमसेन ने ऐसा ही किया और इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से जाना जाने लगा।