आज शुक्रवार है और शुक्रवार के दिन अगर व्रत रखा जाए तो यह सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाला , आरोग्य दायक ,धार्मिक ,धन धान्य , पुत्र पौत्र से सम्पन , मान सम्मान में वृदि , तथा सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला माना जाता है. कहते हैं भगवान शुक्र में अनन्य भक्ति रखकर शुक्रवार का व्रत करना चाहिये और इसी कारण से शुक्रवार को एक समय भोजन सूर्यास्त से पूर्व करना चाहिए . आइए जानते हैं इस दिन व्रत रखने वालों के लिए व्रत विधि.
व्रत विधि – कहते हैं इस दिन सुबह स्नानादि से निर्वत हो स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए और पवित्र स्थान पर विधिपूर्वक पूजन करना चाहिये. इसके बाद चन्दन , फल ,अक्षत से युक्त जल से भरा कलश , उसके ऊपर गुड व चने से भरी कटोरी रखना चाहिए और कथा कहते व सुनते समय हाथ में गुड और भुने चने रखे उस जल से सूर्य को अर्ध्य प्रदान करना चाहिए. इस दिन एक समय भोजन करे या फलाहार कर सकते हैं और सूर्यास्त से पहले भोजन करे अगर नहीं कर पाए तो दुसरे दिन भोजन करे. आइए जानते हैं शुक्रवार की व्रत कथा.
शुक्रवार की व्रत कथा- एक समय की बात हैं कि एक नगर में कायस्थ , ब्राह्मण और वैश्य जाती के तीनों लडकों में परस्पर गहरी मित्रता थी. उन तीनों का विवाह हो गया था. ब्राह्मण और कायस्थ के लडके का गौना भी हो गया था , परन्तु वैश्य के लडके का गौना नहीं हुआ था. एक दिन कायस्थ के लडके ने कहा – हे मित्र ! तुम मुकलावा करके अपनी स्त्री को घर क्यों नही लाते ? स्त्री के बिना घर कैसा बुरा लगता हैं. ‘ यह बात वैश्य के लडके को जच गई. वह कहने लगा की मैं अभी जाकर मुकलावा लेकर आता हूँ. ब्राह्मण के लडके ने कहा – अभी मत जावों क्यों की अभी शुक्र अस्त हो रहा हैं , जब उदय हो जय तब ले आना.
परन्तु वैश्य के लडके ने अपना मन बना लिया था और जिद्ध करने लगा घर वाले के समझाने पर भी नहीं माना और अपने ससुराल चला गया. जवाई जी को आया देख ससुराल वाले ने आने का कारण जानकर बहुत समझया की अभी शुक्र अस्त हैं शुक्र उदय होने के बाद में लेने आये. जवाई जी नहीं माने और घर वालों के नहीं चाहते हुए भी अपनी लडकी को विदा करना पड़ा |वैश्य पुत्र पत्नी को रथ में बैठाकर अपने घर की और चल पड़ा. थोड़ी दुर जाने बाद मार्ग में उसके रथ का पहिया टुटकर गिर गया और बैल का पैर टूट गया. उसकी पत्नी पड़ी और घायल हो गई. जब आगे चले तो रास्ते में डाकू मिले. उसके पास जों भी धन , वस्त्र तथा आभूषण थे वह सब उन्होंने छिन लिया. इस प्रकार अनेक कष्टो का सामना कर जब पति पत्नी अपने घर पहुचे तो आते ही वैश्य के लडके को सर्प ने काट लिया , वह मूर्छित होकर गिर पड़ा |तब उसकी स्त्री अत्यन्त विलाप कर रोने लगी. वैश्य ने अपने पुत्र को बड़े –बड़े वैद्ध्यो को दिखाया वैद्ध्यो ने कहा तिन दिन पश्चात इसकी मृत्यु निश्चित हैं |जब उसके ब्राह्मण मित्र को सारी बात पता लगी तो उसने कहा – “ सनातन धर्म की प्रथा हैं जिस समय शुक्र अस्त हो तब कोई अपनी स्त्री को नही लाता.
परन्तु यह शुक्र के अस्त में अपनी स्त्री को विदा करा कर लाया हैं. इस कारण सारे विघ्न उत्पन्न हुए हैं. यदि यह दोनों ससुराल वापस चले जाये और शुक्र के उदय होने पर पुन: आवे तो निश्चय ही विघ्न टल सकता हैं |” सेठ ने अपने पुत्र और उसकी पत्नी शीघ्र ही अपने ससुराल वापिस पहुंचा दिया. वहाँ पहुचते ही वैश्य पुत्र की मूर्छा दुर हो गई और साधारण उपचार से ही सर्प विष से मुक्त हो गया. अपने दामाद को स्वस्थ देखकर ससुराल वाले अत्यंत प्रसन्न हुए. वैश्य पुत्र अपनी ससुराल में ही स्वास्थ्य लाभ करता रहा और शुक्र का उदय हुआ तब हर्ष पूर्वक उसके ससुराल वालों ने उसको अपनी पुत्री सहित विदा किया. इसके पश्चात पति – पत्नी दोनों घर आकर आनन्द से रहने लगे. इस व्रत को करने से जीवन में आने वाली बांधाए दुर हो जाती हैं.