संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हजारों लोगों को मौत के मुंह में धकेलने वाली 1984 की भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक है। रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि हर साल पेशे से जुड़ी दुर्घटनाओं और काम के चलते हुई बीमारियों से 27.8 लाख कामगारों की मौत हो जाती है।
संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने द सेफ्टी एंड हेल्थ एट द हार्ट ऑफ द फ्यूचर वर्क- बिल्डिंग ऑन 100 इयर्स ऑफ एक्सपीरियंस’ शीर्षक से यह रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश की राजधानी में यूनियन कार्बाइड प्लांट में मिथाइल आइसोसायनेट (मिक) गैस से 6 लाख से ज्यादा मजदूर और आसपास रहने वाले लोग प्रभावित हुए थे।
इसमें कहा गया है कि सरकार के आंकड़ों के अनुसार 15,000 मौतें हुई। जहरीले कण अब भी मौजूद हैं। हजारों पीड़ित और उनकी अगली पीढ़ियां श्वसन संबंधित बीमारियों से जूझ रही है। इससे उनके भीतरी अंगों एवं प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 1919 के बाद भोपाल त्रासदी दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक थी। साल 1919 के बाद अन्य नौ बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में चेर्नोबिल और फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के साथ ही ढाका के राणा प्लाजा इमारत ढहने की घटना शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल पेशे से जुड़ी मौतों की वजह तनाव, काम के लंबे घंटे और बीमारियां है। आईएलओ की मनाल अज्जी ने कहा, ‘रिपोर्ट की मानें तो 36% कामगार कार्यस्थल पर बेहद लंबे घंटों तक यानी हर सप्ताह 48 घंटे से ज्यादा देर तक काम कर रहे हैं।’
चेर्नोबिल हादसे में हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए परमाणु बमों से 100 गुना ज्यादा रेडिएशन निकली थी
अप्रैल 1986 में यूक्रेन में चेर्नोबिल पावर स्टेशन पर चार परमाणु रिएक्टरों में से एक में धमाका हो गया था। इससे नागासाकी और हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बमों की तुलना में 100 गुना ज्यादा विकिरण फैली थी। विस्फोट के साथ ही 31 लोगों की मौत हो गई थी, वहीं रेडिएशन से हजारों लोग मारे गए।
इसके अलावा अप्रैल 2013 में ढाका की राणा प्लाजा इमारत ढह गई थी। इस हादसे में 1,132 लोगों की मौत हो गई थी।