कहते हैं हिन्दू धर्म के अनुसार पूजा-पाठ, धार्मिक आयोजनों, संस्कार और विवाह में पत्नी को पति के बाई ओर बैठकर सभी तरह के अनुष्ठान करने की परंपरा होती है यह परम्परा सदियों से चली आ रही है. ऐसे में शास्त्रों में पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका मतलब होता है बाएं अंग का अधिकारी. जी हाँ, ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है शिव का अर्धनारीश्वर शरीर. तो आज हम आपको बताते हैं पत्नी को वामंगी कहे जाने के पीछे शास्त्रों में क्या कहा गया है.
शास्त्र के अनुसार – शास्त्रों के अनुसार स्त्री पुरुष की वामांगी होती है इसलिए सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, द्विरागमन, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं ओर रहना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती. कहते हैं वामांगी होने के बाद भी भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने के बात शास्त्र कहता है. कहते हैं शास्त्रों के अनुसार कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए.
आप सभी को बता दें कि पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने संबंधी इस मान्यता के पीछे का यह राज है कि जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है, क्योंकि यह कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते हैं. आप सभी को बता दें कि यज्ञ, कन्यादान, विवाह यह सभी काम पारलौकिक कहे जाते हैं और इन्हें पुरुष प्रधान कहते हैं इस कारण से इन कर्मों में पत्नी के दायीं ओर बैठने के नियम हैं.