जानिए! आखिर क्यों लगा भगवान शिव को ब्रह्म हत्या का पाप और कैसे मिली उन्हें इससे मुक्ति दुनियाभर में कई कथा है जो आप सभी ने सुनी होंगी. ऐसे में आप सभी शायद ही जानते हो कि आखिर क्यों भगवान शिव को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था और कैसे उन्हें मिली थी इससे मुक्ति. अगर आप इस बारे में नहीं जानते हैं तो आइए आज हम आपको बताते हैं इस बारे में. इसी के साथ हम आपको बताएंगे कि भगवान शिव 12 वर्ष तक ब्रह्मा जी के कटे हुए सिर के साथ आखिर क्यों रहे थे.
कथा – पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार जब ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद छिड़ा तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ और दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा वही श्रेष्ठ होगा. निर्णय कर दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले और छोर न मिलने के कारण विष्णु वापस उसी जगह पर लौट आए.वहीं ब्रह्मा भी सफल नहीं हुए लेकिन उन्होंने विष्णु से झूठ बोल दिया कि वे छोर तक पहुंच गए हैं.
उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया. ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहां प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी का एक सिर काट दिया. इसी के साथ झूठी गवाही देने के कारण केतकी के फूल को श्राप दिया कि शिव पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होगा और न ही ब्रह्माजी की पूजा की जाएगी.इसी कारण न तो ब्रह्माजी की पूजा की जाती है और न ही शिव पूजा में केतकी के फूल को काम में लिया जाता है. वहीं जब शिवजी का क्रोध शांत हुआ तो उन्हें एहसास हुआ कि ब्रह्मा जी का सिर काटने के कारण उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लग गया है. इस पाप से मुक्ति पाने के लिए करीब 12 सालों तक शिवजी ने ब्रह्मा का कटा सिर लेकर भीक्षा मांगी और इसी से अपना जीवन यापन किया. मान्यता है कि इसी स्वरूप में शिव सभी शक्तिपीठों की रखवाली करते हैं.