अंतरिक्ष यात्रा के दौरान निष्क्रिय वायरस भी हो जाते हैं सक्रिय, बनते हैं इसका कारण

अंतरिक्ष यात्रा के दौरान चर्मरोग का कारण बनने वाले निष्क्रिय वायरस शरीर में फिर से सक्रिय हो जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आइएसएस) में गए अंतरिक्ष यात्रियों पर हुए अध्ययन में यह बात सामने आई है। इसके बाद भविष्य में मंगल व अन्य ग्रहों पर भेजे जाने वाले मानव मिशन खतरे में आ सकते हैं।

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने कहा कि वायरस के सक्रिय होने की गति अंतरिक्ष यात्रा की अवधि पर निर्भर करती है। अंतरिक्ष यात्रा जितनी लंबी होगी, वायरस उतनी ही तेजी से सक्रिय होंगे। नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर के वैज्ञानिक सतीश के मेहता ने कहा, ‘अंतरिक्ष यात्री कई हफ्तों व महीनों के लिए माइक्रोग्रैविटी ( गुरुत्वाकर्षण का कम होना) व कॉस्मिक रेडिएशन का सामना करते हैं। मिशन के दौरान उनके सोने व जागने का चक्र बिगड़ जाता है। आसपास के लोगों से कट जाने के कारण उन्हें तनाव की समस्या रहती है।’

अंतरिक्ष यात्रा के दौरान शरीर पर पड़ने वाले इन्हीं प्रभावों का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने अंतरिक्ष यात्रियों के स्लाइवा, ब्लड व यूरीन के नमूने इकट्ठा किए थे। यात्रा के दौरान, उसके पहले व बाद में जमा किए गए नमूनों के अध्ययन में सामने आया कि अंतरिक्ष यात्रा के वक्त शरीर में तनाव के लिए जिम्मेदार हार्मोन का स्त्राव होने लगता है। इसके फलस्वरूप शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाता है। कई बार अंतरिक्ष से लौटने के 60 दिन बाद तक अंतरिक्ष यात्रियों की प्रतिरक्षी कोशिकाएं अप्रभावी रहती हैं।

कोशिकाओं के कमजोर पड़ने से निष्क्रिय वायरस भी सक्रिय हो जाते हैं। अध्ययन की जानकारी देते हुए मेहता ने कहा, ‘स्पेस शटल से जाने वाले 89 में से 47 जबकि आइएसएस में लंबे समय तक रुकने वाले 23 में से 14 अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर में चर्म रोग संबंधी वायरस तेजी से बढ़ने लगते हैं। यात्रा से पहले व बाद की अपेक्षा यात्रा के दौरान इन वायरसों के बढ़ने की गति अधिक हो जाती है।’

कुछ लोगों में ही इन वायरसों के सक्रिय होने के लक्षण दिखाई देते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य पर बड़ा संकट खड़ा हो सकता है। चांद व मंगल मिशन पर मानवों को भेजने से पहले इस समस्या का हल निकालना जरूरी है।

पाए गए आठ में से चार चर्मरोग वायरस 

स्लाइवा व यूरीन की जांच में वैज्ञानिकों ने पाया कि अंतरिक्ष यात्रा के दौरान चर्मरोग संबंधी आठ में से चार वायरस सक्रिय हो जाते हैं। इनमें चेचक व मुंह में छालों के लिए जिम्मेदार एचएसवी के साथ वीजेडवी, सीएमवी और ईबीवी शामिल हैं। सीएमवी व ईबीवी वायरस के संक्रमण से मोनो या किसिंग डिजीज हो जाती है। इस बीमारी में बुखार, गला खराब होने और चक्कर आने जैसी समस्या हो सकती है।

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