परन्तु जब काफी देर हो जाने का पश्चात भी भगवान शिव अपने ध्यान मुद्रा से नहीं जागे तथा देवी पार्वती की भूख बढ़ने पर वह बहुत व्याकुल हो गयी. अब उनसे अपनी भूख सहन नहीं हो पर रही थी. भूख से व्याकुल होने पर देवी पार्वती ने भगवान शिव को उनकी ध्यान मुद्रा से जगाने का प्रयास किया परन्तु वे नहीं जागे.तब देवी पार्वती भूख से व्याकुल होकर सब कुछ भूल गया तथा उन्होंने महादेव शिव को ही भोजन समझ कर निगल डाला. उस समय देवी पार्वती के शरीर से धूम राशि निकलने लगी. कुछ ही समय में देवी पार्वती के सामने एक सुन्दर कन्या खड़ी थी जिनके चारो तरफ धुँवा ही धुँवा था.
तभी वहां भगवान शिव भी प्रकट हुए तथा उस धुंए से घिरी सुन्दर देवी को देखते हुए देवी पार्वती से बोले की आपका यह सुन्दर अवतार धुंए से लपेटे होने के कारण जग में धूमावती या ध्रुमा के नाम से विख्यात होगा. धूमावती शक्ति अकेली हैं. उनका कोई स्वामी नहीं है. देवी धूमावती की उपासना विपत्ति नाश, रोग-निवारण, युद्ध-जय, उच्चाटन और मारण के लिए की जाती है. शाक्तप्रमोद नामक ग्रंथ में उल्लेखित है कि देवी धूमावती के उपासक पर दुष्टाभिचार का प्रभाव नहीं पड़ता है.
तंत्र ग्रंथो के अनुसार धूमावती ही उग्रतारा हैं, जो धूम्रा होने से धूमावती कही जाती हैं. देवी जिस पर भी प्रसन्न हो जाएं उसके रोग और शोक को नष्ट करती हैं. और यदि देवी किसी पर कुपित हो जाएं तो उस व्यक्ति के जीवन को दुखमय और कामवासनाओं का अंत कर देती हैं.