अयोध्या राम जन्मभूमि मामले को मध्यस्थ के जरिए बातचीत से सुलझाने के लिए भेजा जाएगा या नहीं, इसका फैसला शुक्रवार को हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को अयोध्या विवाद में मध्यस्थता पर फैसला सुनाएगा।
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधानपीठ ने बुधवार को मामला मध्यस्थता को भेजे जाने के मुद्दे पर सभी पक्षों की बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए पक्षकारों से मध्यस्थता पैनल के लिए नाम देने को कहा था।
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने के फैसले को 14 पक्षकारों की ओर से क्रॉस अपील दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। हालांकि हाईकोर्ट में मुख्य याचिकाएं तीन ही पक्षकारों की थीं जिसमें रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड शामिल हैं। हाईकोर्ट ने जमीन का बंटवारा भी इन्हीं तीनों के बीच करने का आदेश दिया था।
रामलला ने नहीं दिया मध्यस्थ का नाम
सुनवाई के दौरान रामलला की ओर से मामला मध्यस्थता को भेजे जाने का विरोध किया गया है। मध्यस्थता के लिए कोई नाम भी नहीं दिया है। इसके अलावा निर्मोही अखाड़ा को छोड़कर सभी हिन्दू पक्षकारों ने भी मामले को मध्यस्थता के लिए भेजने का विरोध किया है जबकि सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड सहित सभी मुस्लिम पक्षकार मध्यस्थता के लिए राजी हैं।
निर्मोही अखाड़ा ने दिए तीन नाम
निर्मोही अखाड़ा ने मध्यस्थता पैनल के लिए सुप्रीम कोर्ट के तीन सेवानिवृत्त न्यायाधीशों का नाम दिया है। जिसमें जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस एके पटनायक के नाम शामिल हैं।
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी दिया एक नाम
सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड ने मामले में मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट को अपनी ओर से एक नाम का सुझाव दिया है।
क्या है मामला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में फैसला देते हुए विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। कोर्ट ने जमीन को रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बांटने का आदेश दिया था साथ ही साफ किया था कि रामलला विराजमान को वही हिस्सा दिया जाएगा जहां वे विराजमान हैं। हाईकोर्ट के इस फैसले को सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल मामले में यथास्थिति कायम है।