जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में CRPF काफिले पर हुए आतंकी हमले में अब तक 40 जवान शहीद हो चुके हैं, जबकि दर्जनों जवान घायल हैं. इस हमले को लेकर रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि आतंकियों ने हमला करने के अंदाज में बदलाव किया है. इस तरह का हमला करीब 18 साल पहले 2001 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर कार में विस्फोटक भरकर हमला किया गया था.आतंकियों ने इस हमले के लिए IED ब्लास्ट किया है जो सुरक्षा एजेंसियों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है.
फिलहाल, इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है. पिछले दो दशकों में यह सबसे बड़ा आतंकी हमला है. 2001 में हुए कार से हमले में 38 लोगों की मौत हुई थी. इस हमले को कश्मीर के ही एक युवक ने अंजाम दिया है जिसका नाम आदिल अहमद है. वह पुलवामा के काकपोरा क्षेत्र का रहने वाला है. कहा जा रहा है कि जिस कार से हमला किया गया है उस कार में करीब 350 किलोग्राम विस्फोटक भरा हुआ था.
11 जनवरी को भी IED हमले में सेना के एक मेजर और एक जवान की मौत हो गई थी. यह हमला लाइन ऑफ कंट्रोल के पास नौशेरा सेक्टर में किया गया था. 2001 के बाद पिछले 18 सालों से जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले के लिए IED से हमला नहीं किया जा रहा था. लेकिन, अचानक से हमले के पैटर्न में बदलाव से सुरक्षा एजेंसियां सोचने के लिए मजबूर हो गई हैं.
IED से हमले की बात करें तो नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में CRPF के सामने बहुत बड़ी चुनौती है. उसी तरह नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में भी आतंकी हमले में IED का जमकर इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन, जम्मू-कश्मीर में हमले का तरीका दूसरा है. यहां चारों तरफ कड़ी सुरक्षा की वजह से आतंकी घात लगाकर हमला करते हैं. उनकी संख्या भी कम होती है, इसलिए वे घात लगाकर हमला करते हैं और उनकी कोशिश होती है कि गोलीबारी ज्यादा से ज्यादा देर तक चलती रहे. इसमें आतंकियों की मदद यहां के स्थानीय पत्थरबाज करते हैं.
ऑपरेशन ऑलआउट के तहत सेना के जवानों के घाटी से आतंकियों के टॉप कमांडर का खात्मा कर दिया है, जिसकी वजह से वे गुस्से में हैं. 2018 में सुरक्षाबलों ने 223 आतंकियों को मार गिराया है. घाटी में आतंकियों की कमर टूट गई है. शायद इसी वजह से आतंकियों ने हमला करने के तरीके में बदलाव किया है.