पहले भी यहां से रहा है नेहरू परिवार का नजदीकी रिश्ता
लखनऊ : सपा-बसपा गठबंधन से बाहर किये जाने के बाद कांग्रेस ने यूपी में प्रियंका बढ़ेरा के रूप में अपने तुरुप का एक्का फेंक दिया है। प्रियंका को लेकर उत्तर प्रदेश के कांग्रेसियों में उत्साह दिख रहा है। कमजोर संगठन के साथ प्रियंका कितना चमत्कार कर पायेंगी, यह तो आम चुनाव के नतीजे बतायेंगे, लेकिन राहुल गांधी ने पूर्वी यूपी की कमान प्रियंका को देकर भाजपा के साथ सपा-बसपा गठबंधन की भी परेशानियों को बढ़ा दिया है। संभावना जताई जा रही है कि प्रियंका आगामी लोकसभा चुनाव में रायबरेली या फूलपुर से उतरने की बजाय लखनऊ सीट से उतर कर बड़ा संदेश देने की तैयारी कर रही हैं।
इस सीट से पहले भी नेहरू परिवार का नजदीकी रिश्ता रहा है। सात बार इस सीट पर कांग्रेस ने अपना परचम फहराया है। 1951 में हुए पहले आम चुनाव में शिवराजवती नेहरू ने अपना परचम लहराया, जो जवाहर लाल नेहरू के चचेरे भाई की पत्नी थीं। 1953 में इनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित ने जीत हासिल की। फिर इस सीट से कांग्रेस के पुलिन बिहारी बनर्जी, वीके धवन और शीला कौल सांसद रहीं। शीला कौल जवाहर लाल नेहरू के साले की पत्नी थीं। वह लखनऊ से तीन बार सांसद रहीं। शीला कौल की पुत्री दीपा कौल ने भी लखनऊ पूर्वी से 1993 में अपनी किस्मत आजमाई लेकिन सफलता नहीं मिली।
इस तरह से देखा जाये तो अमेठी, रायबरेली और फूलपुर के अलावा लखनऊ सीट भी लंबे समय से नेहरू-गांधी परिवार का पंसदीदा सीट रहा है। सियासी जानकार बताते हैं कि लखनऊ से उतर कर प्रियंका भाजपा के दिग्गज नेता राजनाथ सिंह को कड़ी टक्कर देने के साथ ही इसके आसपास की सीटों पर भी बड़ा प्रभाव डाल सकती हैं। वरिष्ठ पत्रकार अशोक यादव कहते हैं कि अगर प्रियंका लखनऊ सीट से चुनावी समर में उतरती हैं तो राजनाथ सिंह को तो इस सीट पर व्यस्त होना ही पड़ेगा, इसका सकारात्मक प्रभाव यूपी में मृतप्राय कांग्रेस पर भी पड़ेगा। लखनऊ से लड़ने के बाद प्रियंका वाड्रा सम्पूर्ण यूपी में कांग्रेस के लिये संजीवनी साबित हो सकती हैं। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कार्यलय गांधी भवन का रंगरोगन किया जा रहा है। बताते हैं यहाँ के सबसे सुंदर कक्ष में प्रियंका का कब्जा होगा।