उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि सभी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, आरपीएफ और एसएसबी को ‘संगठित सेवाएं’ के रूप में मान्यता दी जाए. न्यायालय ने कहा कि यह ठहराव को दूर करेगा और एक ही पद पर तैनात अधिकारियों की पदोन्नति और अन्य सेवा संबंधी लाभ को सुनिश्चित करेगा.
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) के ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार 2006 से सभी लाभ दिए जाने चाहिए. इसमें नॉन फंक्शनल फाइनांसियल अपग्रेडेशन (एनएफएफयू) लाभ भी शामिल है. शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के दो फैसलों को बरकरार रखा, जिसके जरिये उसने रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ), सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी को ‘संगठित सेवा’ का दर्जा दिया था. एनएफएफयू की अवधारणा छठे वेतन आयोग में पेश की गई थी और सरकार ने जिसे ग्रुप ‘ए’ संगठित सेवा बताया था, उन्हें इसका लाभ दिया गया था.
एनएफएफयू के तहत अगर किसी खास बैच के एक अधिकारी को छोड़कर बाकी सभी अधिकारी रिक्तियों के अभाव में पदोन्नत नहीं हो पाते हैं तो अन्य अधिकारी तरक्की पाने वाले अधिकारी के बराबर स्वत: वित्तीय अपग्रेडेशन प्राप्त करेंगे. हालांकि, इसमें सिर्फ वित्तीय अपग्रेडेशन शामिल होगा, न कि रैंक या अनुलाभ (पर्क) का अपग्रेडेशन.
शीर्ष अदालत के आदेश से केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों यथा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), इंडो-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के हजारों ग्रुप- ए अधिकारियों को लाभ होगा.
न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के चार दिसंबर 2012 और तीन सितंबर 2015 के आदेश को बरकरार रखा. उच्च न्यायालय ने 2012 के आदेश में रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) को तथा 2015 के आदेश में सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी को ‘संगठित सेवा’ का दर्जा दिया था.
पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ केंद्र की अपीलों को खारिज करते हुए कहा कि 1986 से आज की तारीख तक कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा प्रकाशित मोनोग्राफ में सीएपीएफ को केंद्रीय ग्रुप ‘ए’ सेवाओं के हिस्से के तौर पर दिखाया गया है. पीठ ने कहा कि इसलिये डीओपीटी को यह अनुमति नहीं होगी कि वह सीएपीएफ को संगठित समूह ए सेवा नहीं माने.
पीठ की तरफ से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि तमाम तथ्यों और परिस्थितियों और रिकॉर्ड में उपलब्ध सामग्रियों पर विचार करने के बाद यह नहीं कहा जा सकता कि सीएपीएफ संगठित ग्रुप ‘ए’ केंद्रीय सेवा नहीं है.