क्या CBI कोलकाता पुलिस कमिश्नर से पूछताछ कर सकती है या नहीं?

सीबीआई vs ममता मामले में आरोप ये लगाए जा रहे हैं कि CBI के पास कोई अधिकार नहीं था. और इसीलिए कोलकाता पुलिस ने CBI के अधिकारियों को हिरासत में लिया लेकिन सच्चाई क्या है, ये किसी को नहीं पता. अब हम आपको ये समझाएंगे कि CBI को इस मामले में जांच का अधिकार है या नहीं? CBI कोलकाता के पुलिस कमिश्नर से पूछताछ कर सकती है या नहीं? 

CBI एक राष्ट्रीय एजेंसी है, जिसके पास पुलिस जैसे अधिकार हैं. हालांकि मूल रूप से इस एजेंसी के अधिकार क्षेत्र में, दिल्ली और केन्द्र शासित प्रदेश ही आते हैं. कानून व्यवस्था राज्य का हिस्सा होती है. इसीलिए CBI को किसी भी राज्य में काम करने के लिए राज्य सरकारों की इजाज़त लेनी होती है. हालांकि कुछ राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों ने CBI को एक General Consent दिया हुआ है. जिसके तहत CBI उन राज्यों में बिना राज्य सरकार की अनुमति के भी जांच कर सकती है.

हालांकि नवंबर 2018 में आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने CBI को राज्य में क़ानून के तहत शक्तियों के इस्तेमाल के लिए दी गई ‘सामान्य रज़ामंदी’ यानी General Consent वापस ले ली थी. इसके बाद इस लिस्ट में छत्तीसगढ़ भी शामिल हो गया है. हालांकि यहां ये भी समझने की ज़रूरत है कि अगर कोई राज्य सरकार CBI को दी गई ‘सामान्य रज़ामंदी’ यानी General Consent वापस लेती है तो इससे पुराने मामलों पर कोई फर्क नहीं पड़ता. यानी जिन मामलों की जांच CBI पहले से कर रही है, वो जांच जारी रहेगी.

इसमें समझने वाली बात ये है कि 2010 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, अगर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट किसी मामले की जांच CBI को देते हैं तो फिर राज्य सरकार की अनुमति की ज़रूरत नहीं होती. और पश्चिम बंगाल के इस मामले में भी ऐसा ही है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में CBI जांच के आदेश दिए थे. CBI की संवैधानिकता और स्वायत्ता को लेकर बार बार सवाल उठते रहे हैं .

आपको शायद पता नहीं होगा 6 नवंबर 2013 को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक आरोपी की याचिका पर CBI के गठन को असंवैधानिक करार दिया था. हालांकि दो दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस आदेश पर रोक लगा दी थी. लेकिन ये मामला दिलचस्प है, जिसकी जानकारी आपको होनी चाहिए.

CBI का गठन 1 अप्रैल 1963 को Delhi Special Police Establishment Act के तहत हुआ था. उस वक्त CBI का गठन, गृह मंत्रालय के एक कार्यकारी आदेश के तहत किया गया था. लेकिन नवंबर 2013 में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गृह मंत्रालय का ये आदेश न तो केंद्रीय कैबिनेट का फ़ैसला था और न ही इस कार्यकारी आदेश को राष्ट्रपति ने अपनी मंज़ूरी दी थी. हाईकोर्ट ने ये भी कहा था कि संबंधित आदेश को एक विभागीय निर्देश के रूप में लिया जा सकता है, जिसे क़ानून नहीं कहा जा सकता.

लेकिन हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई और फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी . इस मामले में नवंबर 2013 से लेकर अब तक सुप्रीम कोर्ट में 12 बार सुनवाई हो चुकी है, लेकिन अभी तक ये केस नियमित सुनवाई तक ही नहीं पहुंच पाया है. और ना ही केन्द्र सरकार की तरफ से CBI के गठन पर बदलाव की पहल की गई है. यानी सरकारें अपनी सहूलियत के हिसाब से CBI का इस्तेमाल करती हैं.

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