अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को लेकर बढ़ते दबाव के बीच केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण पहल करते हुये अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल के आसपास की 67.390 एकड़ अधिग्रहित ‘विवाद रहित’ भूमि उनके मालिकों को लौटाने की अनुमति के लिये मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर किया. इस पहल को लोक सभा चुनावों से कुछ समय पहले केंद्र सरकार का महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है. केंद्र सरकार ने इस आवेदन में कोर्ट के 2003 के आदेश में सुधार का अनुरोध किया है.
मोदी सरकार ने 33 पृष्ठों के आवेदन में 31 मार्च, 2003 के आदेश का जिक्र करते हुये कहा है कि शीर्ष अदालत ने विवादित भूमि तक यथास्थिति बनाये रखने का आदेश सीमित रखने की बजाय इस आदेश का विस्तार इसके आसपास की अधिग्रहित भूमि तक कर दिया था. अयोध्या में छह दिसंबर, 1992 से पहले 2.77 एकड़ के भूखंड के 0.313 एकड़ हिस्से में यह विवादित ढांचा मौजूद था, जिसे कारसेवकों ने गिरा दिया था. इसके बाद देशभर में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हुए थे.
सरकार ने 1993 में एक कानून के माध्यम से 2.77 एकड़ सहित 67.703 एकड़ भूमि अधिग्रहित की थी. इसमें रामजन्म भूमि न्यास उस 42 एकड़ भूमि का मालिक है, जो विवादरहित थी, जिसका अधिग्रहण कर लिया गया था. भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने मंगलवार को न्यायालय में दायर एक आवेदन में दावा किया है कि सिर्फ 0.313 एकड़ का भूखंड, जिस पर विवादित ढांचा था, भूमि का विवादित हिस्सा है.
आवेदन में कहा गया है, ‘आवेदक न्यायालय में यह आवेदन दायर कर अयोध्या में चुनिन्दा क्षेत्र के अधिग्रहण कानून, 1993 के तहत अधिग्रहित अतिरिक्त भूमि उनके मालिकों को सौंपने का कर्तव्य पूरा करने की न्यायालय से अनुमति चाहता है.’
आवेदन में शीर्ष अदालत के 31 मार्च, 2003 के आदेश में सुधार का अनुरोध किया गया है. इस आदेश के तहत केन्द्र सरकार को विवाद रहित अधिग्रहित भूमि सहित समूची भूमि के मामले में ‘यथास्थिति’ बनाये रखने का निर्देश दिया गया था.
अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 के फैसले में 2.77 एकड़ भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बराबर वितरित करने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपीलें लंबित हैं, जिन पर 29 जनवरी को पांच सदस्यीय पीठ को विचार करना था परंतु एक न्यायाधीश के उपस्थित नहीं होने की वजह से यह पीठ सुनवाई नहीं कर सकी.
बहरहाल, भाजपा ने मंगलवार को संकेत दिया कि अयोध्या में विवादास्पद राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद स्थल के पास अधिग्रहित की गई 67 एकड़ जमीन मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति मांगने के लिये केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पवित्र नगरी में राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगी.
केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रकाश जावड़ेकर ने सरकार की ओर से शीर्ष अदालत में दायर अर्जी का बचाव करते हुए कहा कि केंद्र विवादित जमीन को नहीं छू रहा है. जावड़ेकर ने संवाददाताओं से कहा, ‘आज सरकार ने 1994 में अधिग्रहित जमीन मूल मालिकों को वापस लौटाने का सिद्धांत रूप में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है. 67 एकड़ अविवादित जमीन में से 42 एकड़ जमीन का स्वामित्व राम जन्मभूमि न्यास के पास है. सरकार इस जमीन को इसके मूल मालिकों को लौटाना चाहती है और वे :मूल मालिक: राम मंदिर बनाना चाहते हैं.’ दूसरी ओर, केंद्र सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने के समय पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस ने मंगलवार को कहा कि देश खुद तय कर सकता है कि चुनाव से ठीक पहले सरकार के इस कदम के पीछे क्या मंशा है.
पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘इस मामले में जो भी निर्णय करना है वो उच्चतम न्यायालय करेगा. लेकिन इतना जरूर कह देता हूं कि 29 जनवरी को सरकार ने याचिका नहीं, बल्कि अर्जी दायर की है. हम नहीं कह सकते कि इसके पीछे की वजह चुनावी है या कुछ और है. यह आप लोगों को तय करना है.’ विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा, ‘यह जमीन राम जन्मभूमि न्यास की है और यह किसी वाद में नहीं है. यह कदम (सरकार का) सही दिशा में उठाया गया कदम है और हम इसका स्वागत करते हैं.’ उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा राम जन्मभूमि न्यास की भूमि को उसे वापस दिए जाने संबंधी केंद्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट में की गई प्रार्थना का विहिप ने स्वागत किया है. न्यास ने यह भूमि भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर हेतु ली थी.
आलोक कुमार ने कहा कि विहिप को विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार की इस अर्जी का शीघ्र निपटारा करेगा. वहीं, केंद्र सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए माकपा ने आरोप लगाया कि इसका लक्ष्य लोकसभा चुनाव से पहले संघ परिवार को खुश करना है. एक बयान में पार्टी पोलित ब्यूरो ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अड़ंगा डालने के लिये सरकार की ओर से यह ‘कुटिल’ प्रयास है.
बयान में कहा गया है, ‘माकपा पोलित ब्यूरो अयोध्या में अधिग्रहण की गई गैर विवादित जमीन से यथास्थिति हटाने के लिये उच्चतम न्यायालय में केंद्र सरकार द्वारा दायर याचिका को पुरजोर तरीके से नामंजूर करता है. वह इस जमीन को राम जन्मभूमि न्यास को सौंपना चाहती है, जिसे विहिप ने राममंदिर के निर्माण के लिये स्थापित किया था.’