कहा जाता है शनिदेव का नाम सुनकर अच्छे अच्छे लोगों के कान खड़े हो जाते हैं. जी दरअसल शनि देव की दृष्टि जिसपर भी पद जाती है उसके साथ बहुत बुरा होता है. ऐसे में बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ है कि शनिदेव है कौन. ऐसे में अगर आप भी नहीं जानते हैं कि वह कौन है तो आइए हम आपको बताते हैं इनके जन्म की कहानी.
शनिदेव के जन्म की कहानी – आप सभी को बता दें कि शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशीखंड में जो कथा मिलती वह कुछ इस प्रकार है -त्रिदेवों के काल में शनि नामक भी एक देवता थे। शनि को सूर्यदेव का पुत्र माना गया है। उनकी बहन का नाम देवी यमुना और उनकी माता का नाम छाया है। उनकी पत्नी और पुत्र भी हैं। शनिदेव का किसी शनिग्रह से कोई संबंध नहीं है। शनि के जन्म के संबंध में शास्त्रों में बताया गया है कि सूर्य की पत्नी छाया ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या किया। तपस्या की कठोरता और धूप-गर्मी के कारण छाया के गर्भ में पल रहे शिशु का रंग काला पड़ गया। तपस्या के प्रभाव से ही छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म शिंगणापुर में हुआ। वहीं शास्त्रों के अनुसार हिन्दी मास ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनिदेव का जन्म रात के समय हुआ था। शनिदेव के जन्म के बाद जब सूर्य अपनी छाया और पुत्र से मिलने पहुंचे तो उन्होंने देखा कि छाया का पुत्र काला है। काले शिशु को देखकर सूर्य ने इसे अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया।शनिदेव के गुस्से की एक वजह उपरोक्त कथा में सामने आयी कि माता के अपमान के कारण शनिदेव क्रोधित हुए लेकिन वहीं ब्रह्म पुराण इसकी कुछ और ही कहानी बताता है।