मुंबई : ‘गंदा है पर धंधा है ये’, बॉलीवुड की एक मशहूर फिल्म का यह डायलॉग मुंबई डांस बार के धंधे पर बिल्कुल फिट बैठता है, जिसकी करीब डेढ़ दशक पहले तक देश की आर्थिक राजधानी कहलाने वाली मुंबई की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ी हिस्सेदारी थी। लाखों लोगों की आजीविका चलाने वाला डांस बार का धंधा कोई छोटा-मोटा व्यापार नहीं, बल्कि दो लाख करोड़ रुपये की वैध-अवैध अर्थव्यवस्था थी। धंधे के जानकारों की मानी जाए तो अगस्त 2005 में जब डांस बार बंद किए गए, तब इसका सालाना वैध कारोबार ही 40 से 42 हजार करोड़ रुपये का था। इस हिसाब से देखा जाए तो पिछले डेढ़ दशक में सरकार को कई लाख करोड़ रुपये के राजस्व का घाटा हुआ है।
मुंबई की डांस बार संस्कृति पर गहन अध्ययन करके ‘बॉम्बे बार’ शीर्षक से किताब लिखने वाले विवेक अग्रवाल ने ‘अमर उजाला’ से विशेष बातचीत में बताया कि डांस बार के व्यवसाय में शराब, डांसरों पर विभिन्न मदों में होने वाले खर्च और वेश्यावृत्ति से लेकर पुलिस को दिया जाने वाला हफ्ता शामिल है। अकेले मुंबई पुलिस का हफ्ता ही करीब 15 से 20 हजार करोड़ रुपये का होता था। डांस बारों के बिजनेस में उद्योगपतियों के साथ-साथ पुलिस और राजनेता भी शामिल हैं। सूत्रों का दावा है कि मुंबई के एक प्रमुख राजनीतिक दल के शीर्ष नेताओं की ही पांच डांस बार में हिस्सेदारी है। यह भी कहा जाता है कि डेढ़ दशक पहले तक इस दल की आय का बड़ा स्रोत ये डांस बार ही थे। यह भी कहा जाता है कि महाराष्ट्र के तत्कालीन गृहमंत्री आरआर पाटिल ने अपने प्रमुख राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी दल की आर्थिक रीढ़ तोड़ने के लिए ही डांस बार पर प्रतिबंध का दांव खेला था।
मुंबई डांस बार : खास बातें
- 2005 में प्रतिबंध लगाया था सरकार ने डांस बार चलाने पर
- 20 से 22 हजार वैध-अवैध डांस बार थे मुंबई में बंदी के समय
- 800 डांस बार ही पंजीकृत थे सरकारी आंकड़ों में
- 02 से ढाई हजार डांस बार प्रतिबंध के बावजूद चल रहे
- 75 हजार के करीब डांसर थीं मुंबई के डांस बारों में बंदी के समय
- 35 हजार ही अब भी वेटर या गायिका के तौर पर काम कर रहीं
- 40 हजार ने डांस बार बंद होने पर पकड़ लिए थे दूसरे धंधे