प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावा करते हैं कि देश में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ यानी कारोबार करना आसान हुआ है. लेकिन योगुरु बाबा रामदेव के पतंजलि फूड पार्क को लेकर जो विवाद शुरू हुआ है, उससे ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ को लेकर सवाल उठ रहे हैं. सवाल है कि जब पीएम मोदी के बेहद करीबी बाबा रामदेव जैसी ताकतवर शख्सियत को बिजनेस करने में मुश्किल आ रही है तो आम कारोबारियों का क्या हाल होता होगा?
पीएम मोदी ने क्या दावा किया था?
पिछले साल नवंबर में पीएम मोदी ने इंडिया बिजनेस रिफॉर्म्स के एक कार्यक्रम में कहा था, ‘’हमारी सरकार ने भारत में कारोबार करना आसान किया है. हमारे पास उपलब्ध आर्थिक संभावनाओं को टटोलने के लिये भारत दुनिया का स्वागत करता है. हम रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफार्म के मंत्र के साथ रैंकिंग में और सुधार करने और अधिक आर्थिक वृद्धि हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. भारत आज वहां पहुंच चुका है जहां से आगे बढ़ना और आसान है.’’
‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की रैंकिंग में भारत शीर्ष 100 देशों में शामिल
बता दें कि ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की रैंकिंग में भारत शीर्ष 100 देशों में शामिल है. महज तीन साल के मामूली समय में भारत ने 42 पायदान की छलांग लगाई है. पीएम मोदी ने उस दौरान कहा था कि इस रैंकिंग को भले ही कारोबारी सुगमता कहते हैं लेकिन कि ये कारोबारी सुगमता के साथ ही जीवन यापन की सुगमता की भी रैंकिंग है. ये रैंकिंग सुधरने का मतलब है कि देश में आम नागरिक, देश के मध्यम वर्ग की जिंदगी और आसान हुई है.
ऐसे में रामदेव के पतंजलि फूड पार्क से खड़ा हुआ विवाद भारत की इस रैंकिंग पर भी सवाल खड़े करता है. सरकार के लिए यह एक बड़ा झटका है.
क्या है ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’
दरअसल ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की रिपोर्ट विश्व बैंक की तरफ से जारी होती है. इसके लिए दस कारकों को आधार बनाया जाता है. इनमें से आठ में भारत की स्थिति बेहतर हुई है. मसलन, छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा, कर्ज पाने, कंस्ट्रक्शन परमिट हासिल करने, ठेके को लागू करने और दिवालिया प्रक्रिया पूरा करने जैसे मामलों में स्थिति बेहतर हुई है.
विश्वबैंक की डूइंग बिजनेस की सूची में न्यूजीलैंड पहले स्थान पर जबकि सिंगापुर दूसरे पायदान पर है. वहीं भारत 100वें और उसके पड़ोसी देश चीन 15वें, पाकिस्तान 147वें और बांग्लादेश 177वें नंबर पर है.
व्यापार के मामले में नोएडा 12वें नंबर पर
भारत में व्यापार करने के मामले में पंजाब का लुधियाना शहर नंबर वन है. वहीं हैदराबाद दूसरे और भुवनेश्वर तीसरे नंबर पर है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली छठे, मुंबई 10वें, कोलकाता 17वें और जहां पतंजलि का फूडपार्क बनेगा यानी नोएडा 12वें नंबर पर है.
क्या है रामदेव का पतंजलि विवाद?
दरअसल यूपी सरकार ने ग्रेटर नोएडा में पतंजलि का मेगा फूड पार्क पहले रद्द कर दिया था. इसके बाद 6 हजार करोड़ की लागत से बनने वाले फूड पार्क से रामदेव ने हाथ खींच लिए थे और फूड पार्क यूपी से बाहर ले जाने का एलान कर दिया था. पतंजलि ने आरोप लगाया कि पतंजलि हर्बल एंड मेगा फ़ूड पार्क नाम के टाइटल को एनओसी देने के नाम पर योगी सरकार एक साल से ज्यादा समय से टालमटोल करती रही.
गौरतलब है कि किसी भी कंपनी को मंत्रालय से फूड पार्क के लिए ग्रांट या अनुदान राशि के लिए जमीन का टाइटल, कंपनी का टाइटल और बैंक लोन एनओसी या बैंक के खाते की क्लोजर रिपोर्ट चाहिए होती है. पतंजलि को भी इस मामले में 15 जून तक क्लोजर रिपोर्ट जमा करने के लिए कहा गया था, लेकिन योगी सरकार की तरफ से पतंजलि को जमीन का टाइटल नहीं मिला.
पतंजलि हर्बल एंड मेगा फ़ूड पार्क क्या है?बता दें कि फूड पार्क में तेल, आटा, बिस्किट समेत कई सामानों का उत्पादन किया जाता है. यूपी में अखिलेश सरकार के समय फूड पार्क को मंजूरी और जमीन दी गई थी. इसके बाद फूड पार्क की जमीन पर दफ्तर और किनारे की दीवारें भी बनाई जा चुकी थीं.
पतंजलि ने इस फूड पार्क से करीब एक हजार लोगों को रोजगार दिए जाने का दावा किया था. इतना ही नहीं आसपास के इलाकों के हजारों किसानों को फायदा मिलने का भी दावा किया गया था.