अयोध्या मामले की गुरुवार को सुनवाई होने जा रही है. इस संबंध में नवगठित पांच सदस्यीय पीठ में न केवल मौजूदा प्रधान न्यायाधीश होंगे बल्कि इसमें चार अन्य न्यायाधीश भी होंगे जो भविष्य में सीजेआई बन सकते हैं. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली इस पांच सदस्यीय संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति उदय यू ललित और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ शामिल हैं. न्यायमूर्ति गोगोई के उत्तराधिकारी न्यायमूर्ति बोबडे होंगे. उनके बाद न्यायमूर्ति रमण, न्यायमूर्ति ललित और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की बारी आएगी.
शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड नोटिस के मुताबिक अयोध्या भूमि विवाद में याचिकाएं 10 जनवरी, 2019 को सुबह साढ़े दस बजे प्रधान नयायाधीश के न्यायालय में संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध होंगी.
‘मस्जिद, इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं’
इससे पहले शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने गत वर्ष 27 सितंबर को 2 :1 के बहुमत से मामले को शीर्ष अदालत के 1994 के एक फैसले में की गई उस टिप्पणी को पुनर्विचार के लिये पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से मना कर दिया था जिसमें कहा गया था कि मस्जिद, इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है. मामला अयोध्या भूमि विवाद मामले पर सुनवाई के दौरान उठा था.
इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका पर सुनवाई
यह पीठ इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करेगी. अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित 2.77 एकड़ भूमि के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर, 2010 के 2:1 के बहुमत के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपीलें दायर की गई हैं. हाई कोर्ट ने इस फैसले में विवादित भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था.
इस फैसले के खिलाफ अपील दायर होने पर शीर्ष अदालत ने मई 2011 में उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक लगाने के साथ ही विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया था. इससे पहले जब मामला चार जनवरी को सुनवाई के लिये आया था तो इस बात का कोई संकेत नहीं था कि भूमि विवाद मामले को संविधान पीठ को भेजा जाएगा क्योंकि शीर्ष अदालत ने बस इतना कहा था कि इस मामले में गठित होने वाली उचित पीठ 10 जनवरी को अगला आदेश देगी. इस कारण मामले में पेश होने वाले वकीलों ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ गठित करने पर आश्चर्य जताया था.
सभी पक्षों की ओर से पेश होने वाले वकीलों ने कहा कि उन्हें इस बात का कोई संकेत नहीं मिला था कि यह मामला संविधान पीठ को भेजा जाएगा. कुछ वरिष्ठ वकीलों ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा कि सभी को उम्मीद थी कि तीन न्यायाधीशों वाली पीठ गठित की जाएगी. वकीलों में से एक ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लग रहा था कि किसी को भी इस बात का आभास हुआ होगा कि पांच न्यायाधीशों वाली पीठ गठित होगी.”