कम कोलेस्ट्राल व वसा के कारण क्षेत्र में भी कड़कनाथ मुर्गा उन लोगों की पहली पसंद बनता जा रहा है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से मीट से परहेज करते हैं। वहीं, कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के वैज्ञानिक वर्तमान में कड़कनाथ, आस्ट्रोलाप, कैरी देवेंद्रा व उत्तराखंड की पहली प्रजाति उत्तरा प्रजातियों के कुक्कुट पर यहां की जलवायु का प्रभाव देखने के लिए शोध कर रहे हैं।
ढकरानी केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. एके सिंह बताते हैं कि काश्तकार व पशुपालक ऐसी प्रजातियों को तरजीह देते हैं, जिससे कम समय में ज्यादा मुनाफा हो। यही वजह है कि ग्रामीण कैरी देवेंद्रा प्रजाति ज्यादा पालते हैं। इस कुक्कुट प्रजाति की मुर्गियां साल भर में 200 अंडे तक देती हैं, जबकि मुर्गे करीब दो माह में 1600 ग्राम तक हो जाते हैं। वहीं अन्य प्रजातियों के कुक्कुट साल भर में 80 से 85 के बीच अंडे देते हैं।
इसी को देखते हुए मैदानी व पर्वतीय क्षेत्रों में कैरी देवेंद्रा प्रजाति को ज्यादा तरजीह देते हैं, लेकिन कड़कनाथ प्रजाति अपने आप में अनूठी है। मध्यप्रदेश के झांबुआ में कड़कनाथ रिसर्च सेंटर कड़कनाथ पर विशेष शोध कर रहा है। इस प्रजाति की खूबी यह है कि यह पूरी तरह से काला है। इसका अंडा भी सफेद की जगह काला है। खून लाल की जगह काला है। वैज्ञानिक डॉ. एके सिंह ने बताया कि कड़कनाथ प्रजाति के मीट को लोग स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा मानते हैं, क्योंकि इसके मीट में कोलेस्ट्राल एक प्रतिशत से कम है, वसा भी काफी कम मात्रा में होता है। आजकल कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी में चार प्रजातियों पर यहां की जलवायु का असर जानने को शोध चल रहा है। साथ ही पशुपालन विभाग कुक्कुट प्रजातियों की पूर्ति लोगों तक कर रहा है।
केंद्र के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. एसएस सिंह की देखरेख में शोध कर रहे वैज्ञानिक डॉ. एके सिंह ने बताया कि यहां की जलवायु में उत्तरा का उत्पादन बेहतर है, लेकिन सबसे ज्यादा डिमांड कैरी देवेंद्रा की करते हैं, क्योंकि उन्हें मीट व अंडे के हिसाब से लाभ चाहिए। वैज्ञानिक बताते हैं कि कम कोलेस्ट्राल की वजह से कड़कनाथ प्रजाति को पसंद किया जा रहा है। कड़कनाथ दुर्लभ मुर्गे की प्रजाति है।
यह काले रंग का मुर्गा होता है जो दूसरी प्रजातियों से ज्यादा स्वादिष्ट, पौष्टिक, सेहतमंद और कई औषधीय गुणों से भरपूर बताया जाता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा भी अन्य प्रजातियों से बेहतर बताई जाती है, कड़कनाथ को लोकल भाषा में कालीमासी भी कहा जाता है। वैज्ञानिक ने बताया कि अभी शोध चल रहा है, वैसे चारों प्रजातियां अभी तक जलवायु के हिसाब से उपयुक्त पाई गई हैं।