नई दिल्ली : संसद में गुरुवार को जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाने को मंजूरी दे दी। केंद्र सरकार ने कहा कि वह राज्य में चुनाव कराने के लिए पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने के लिए तैयार है। राज्यसभा में आज इस विषय पर हुई चर्चा और गृहमंत्री राजनाथ सिंह के उत्तर के बाद सदन ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने को मंजूरी दे दी। लोकसभा पहले ही अपनी स्वीकृति दे चुकी है। गृहमंत्री ने चर्चा का उत्तर देते हुए कहा कि यदि राज्य में चुनाव कराने के लिए निर्वाचन आयोग कोई फैसला करता है तो केंद्र सरकार हरसंभव सुरक्षा मुहैया प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि राज्य की वर्तमान स्थिति के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराना गलत है। उन्होंने कहा कि राज्य में शांति कायम करने के लिए सरकार विभिन्न राजनैतिक दलों के सुझावों पर विचार करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने को लेकर सरकार की मंशा पर कोई संदेह नहीं किया जाना चाहिए।
चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि जम्मू कश्मीर को लेकर देश आज कांग्रेस की गलत नीतियों का खमियाजा भुगत रहा है। आजादी के बाद से ही कांग्रेस ने ऐसी नीतियां अपनाईं, जिनसे स्थानीय जनता में अलगाव की भावना पनपी। राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इस बात की समीक्षा की जानी चाहिए कि इससे राष्ट्रीय एकीकरण में मदद मिली अथवा देश से अलग होने की भावना मजबूत हुई। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी और कांग्रेस के बीच कश्मीर संबंधी नीति को लेकर बुनियादी मतभेद हैं। इतिहास इस बात का फैसला करेगा कि कश्मीर के संबंध में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की सोच सही थी या पंडित जवाहर लाल नेहरू की।
प्रतिपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद के इस कथन का जेटली ने प्रतिवाद किया कि मोदी सरकार के कार्यकाल में राज्य में हालात बहुत बिगड़ गए हैं और लोगों में अलगाववादी प्रवृत्ति मजबूत हुई है। जेटली ने कहा कि कांग्रेस नेता जिस स्वर्णिम काल का उल्लेख कर रहे हैं, उस दौरान राज्य में कभी स्वतंत्र चुनाव नहीं हुए। मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्वकाल में 1977 में जो चुनाव हुए, उन्हीं को स्वतंत्र और निष्पक्ष माना जा सकता है। वित्तमंत्री ने हाल में राज्य में संपन्न स्थानीय निकाय के चुनावों को एक सकारात्मक कदम बताया, जिससे राज्य में एक लोकतांत्रिक ताकत खड़ी हुई है।